गज़ल
गुस्सा यूँ ही नहीं इतना भरा है मुझमें
कोई तो है जो मुझसे ही खफा है मुझमें
झूठ को सच नहीं कहता किसी फायदे के लिए
मैं गरीब हूँ माना पर अना है मुझमें
ज़िंदगी कर ले सितम जितने तू कर सकती है
आखरी साँस तक लड़ने का माद्दा है मुझमें
मैं तही-कासा और तिश्नालब सही लेकिन
डुबा दे बस्तियां एक ऐसा दरिया है मुझमें
पास सबकुछ था जब तलक तू साथ था मेरे
बिछड़ के तुझसे देख ले बचा क्या है मुझमें
— भरत मल्होत्रा