कविता

मैं दशरथ नंदन कौशल्या पुत्र राम हूँ

अपनी जन्मभूमि अयोध्या में हूँ
फिर क्यूँ अब तक बेघर हूँ
आते हैं सब मांगने  मुरादें मेरे दर
और मैं खुद बेघर दर बदर हूँ
सबके दिलों की आस हूँ
मैं पुष्पों का सुबास हूँ
राम का रूप और नाम हूँ
कृष्ण का रचाया रास हूँ
अपने घर के बाहर पड़ा हूँ
इसीलिये रहता उदास हूँ
गंगा का खूबसूरत किनारा हूँ
मैं ही सबका आखिरी सहारा हूँ
शिव के तीसरे नेत्र का उजाला हूँ
जो मीरा पी गई विष का वो प्याला हूँ
मैं इस नश्वर जग का रखवाला हूँ
और खुद मैं  बेघर बेसहारा हूँ
जग कर्ता जग पालन कर्ता हूँ
सारी सृष्टि का मैं कर्ता धर्ता हूँ
राधा के प्रेम का मैं अधिकार हूँ
मीरा की भक्ति का मैं उद्गार हूँ
सीता के हाथों का स्वयंवर माल हूँ
फिर भी मैं बेघर हूँ बेहाल हूँ
मैं आलीशान मंदिरों में पूजा गया
और अपने घर से निकाला गया
मेरा नाम लेकर संसार तर गया
और मैं अब तलक ना अपने घर गया
कोई मस्जिद गया कोई मंदिर गया
किसी ने मेरा नाम लेकर काम किया
किसी ने काम करके मेरा नाम लिया
सबने अपना अपना काम साध लिया
मुझे क्यूं मेरे घर के बाहर बांध दिया
अब मुझे भी मेरे घर तक जाना है
जल्दी बनाओ गर घर मेरा बनाना है
अयोध्या मेरी जन्मभूमि है और
भक्तों के दिलों में मेरा ठिकाना है
मंदिर बनाओ या मस्जिद बनबाओ
अब मुझे मेरे घर जल्दी पहुंचाओ
मै निष्काम का हर काम हूँ
मंदिर की घंटी मस्जिद की अजान
दोनों में बसने वाला राम हूँ
आकार हूँ मैं ही निराकार हूँ
निराधारों का मैं आधार हूँ
हां मैं अयोध्या वासी दशरथ
नंदन कौशल्या पुत्र राम हूँ
मानव तन मन को तारता
अयोध्या का मनभावन धाम हूँ
आरती त्रिपाठी 

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश