लघुकथा

संघर्ष

कुछ दिनों से संदना का फेसबुक पर मन को झकझोरने वाली ‘सृष्टि की व्यथा’ को कम करने के लिए अपने ग्रुप से विचार-विमर्श चल रहा था.

”सृष्टि को प्रदूषण-मुक्त करने के लिए हम केवल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ की प्रतीक्षा नहीं कर सकते.” संदना नाम के अनुरूप सृष्टि को सुगंधित और सुष्ठु करने के लिए कृत संकल्प थी.

”आपने लिखा- सृष्टि की व्यथा की ‘सरसराहट’ इंसान वक्त पे सुनता है तो उसका भविष्य सुधर जाएगा, लेकिन अपनी गलतियों पर सोचने के लिए उसके पास समय होना चाहिए न! जिसकी जिंदगी ही कलपुर्जे बन गयी हो, उससे क्या उम्मीद करें!” कुसुम ने लिखा था.

कलपुर्जे होती जिंदगी और कलपुर्जे बनाने वाली फैक्टरी की मनमानी से शरीर और शहर को ज़हर भरा और दुर्गंधित करने की जुर्रत से संदना भलीभांति वाकिफ और संजीदा थी.

”समय तो हमें निकालना पड़ेगा, नहीं तो समय हमें निकाल देगा. सोने में सोने जैसे समय को नहीं गंवाना है. आज हमें कलपुर्जे बनाने वाली फैक्टरी को तरह-तरह के कैमिकल पानी में घुलने से बचाने के अनेक उपाय समझाने और न मानने पर संघर्ष करने के लिए चलना ही होगा.”

सृष्टि की चुकती जा रही सुगंध, खूबसूरती, सर्जकता और धैर्यशीलता को संवारने हेतु साइकिल लेकर संदना अपने ग्रुप से मिलने के लिए निकल पड़ी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “संघर्ष

  • लीला तिवानी

    संदना ने सृष्टि को प्रदूषण-मुक्त करने के लिए संघर्ष करने की ठानी थी, इसलिए बिना समय गंवाए अपने ग्रुप के साथ साइकिल पर निकल पड़ी. साइकिल का चुनाव इसलिए, कि सृष्टि की चुकती जा रही सुगंध, खूबसूरती, सर्जकता और धैर्यशीलता बनी रहे.

Comments are closed.