ग़ज़ल
एक नगर में आबो दाना कब होता है
बंजारों का ठौर ठिकाना कब होता है
जाते हैं सब लोग गुलों वाले मौसम में
बगिया में पतझर में जाना कब होता है
खुशहाली में साथ निभाता है हर कोई
कंगाली में साथ ज़माना कब होता है
जिनके अपने छोड़ गये अपनों को तनहा
उनके दिल का दर्द पुराना कब होता है
पगडंडी पर पैदा होते पलते हैं जो
उनकी किस्मत में सुख पाना कब होता है
मेरा हाल वही है अब भी, जैसा कल था
ग़म का ख़ुशियों से याराना कब होता है
हाथ मिले हाथों से लेकिन वो भी रस्मन
दिल से अब दिल का मिल पाना कब होता है
— सतीश बंसल