पर्यावरण

भारत में प्रदूषण बनाम उसका समाधान और पर्यावरण संरक्षण

भारत में मूर्खता के संदर्भ में एक लोकोक्ति बहुत प्रसिद्ध है कि ‘कालीदास (कहा जाता है बाद में वही महाकवि कालीदास बने) इतने मूर्ख थे कि जिस पेड़ की डाली पर वे बैठे थे, उसी को काट रहे थे।’ हम ये उदाहरण भारत के प्रदूषण के संदर्भ में देना चाहते हैं। प्रदूषण हमारे लिए आत्मघाती है, इसे हम खूब ठीक से जानते हुए भी, हम ठीक अपने मूर्ख पूर्वज कालीदास के पदचिन्हों पर धड़ल्ले से चल रहे हैं, उदाहरणार्थ हम लगभग हर साल दीपावली के बाद ठंड के शुरू में भयंकर प्रदूषण का खूब शोर मचाते हैं परन्तु कितने दुःख और ताज्जुब की बात है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पटाखे प्रतिबंधित होने के बावजूद भी हम दीपावली पर ब्लैक में भी बड़े-बड़े बम वाले पटाखे खरीदकर उन्हें खूब बजाते हैं, नहीं तो हमारा धार्मिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। कितनी विडंबना है कि हम खुद, हमारा समाज और हमारी सरकारें प्रदूषण बढ़ाने के लिए मूर्ख कालीदास जैसे वो हर कृत्य करते हैं जो प्रदूषण को खूब बढ़ाए, मसलन हम सार्वजनिक वाहनों की सुविधा होने पर भी हम अपनी कारों में अकेले बैठकर ऑफिस या बाजार जरूर जाते हैं। अभी हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा शुरू किए गये लेजर शो भी मानव शरीर के लिए किसी भी भयंकर प्रदूषण से भी भयंकरतम् खतरा है।
आज से 40-50 साल पहले हम सभी लोग एक ही किताब से क्रम से बड़े भाई से शुरू होकर चौथे भाई या बहन तक एक ही किताब से पढ़ लेते थे, अब उसके ठीक उलट ग्रीन बेल्ट पर मिट्टी के मोल आबंटित कथित पब्लिक स्कूल वाले अपने अधिकतम कमीशन के खातिर हर वर्ष पाठ्यक्रम बदलकर बच्चों को नई किताब खरीदने को बाध्य करते हैं, अमेरिका जैसे दुनिया के सबसे संपन्न देश में भी ऐसे नहीं होता, जिसके फलस्वरूप कागज बनाने के लिए हर साल 40 प्रतिशत तक अधिक पेड़ भले ही हमें काटने पड़ें, अपने किसानों को उनकी फसलों की लागत तक की कीमत का भुगतान न करके उनके पराली जलाने से प्रदूषण का सारा दोष उन पर ही थोप देते हैं, जबकि पराली से मात्र 8 प्रतिशत और हमारी कारों और कल-कारखानों से निकलने वाले धुँए से 92 प्रतिशत प्रदूषण होता है ! आखिर दुनिया भर में पराली की समस्या है, वहाँ के लोग उसका कंपोस्ट खाद या कागज या चारा बनाकर उसका स्थाई निपटारा करते हैं। हम अपने शहरों के कचरे का स्थाई निपटारे के लिए कोई प्रबंधन न करके प्रायः उसे चुपचाप, चोरी से किसी ऐसे गरीब और कमजोर लोगों की बस्तियों में डाल देते हैं, जो लोग विरोध न कर सकें, हम आज तक अपने महानगरों (राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक में) से निकलने वाले मल-मूत्र युक्त सीवर के पानी को पुनर्शोधित करके अपनी नदियों में डालने का प्रबंध न करके सीधे अपनी पड़ोस में बहने वाली नदी में डाल देते हैं, बात यहीं तक नहीं रूकती हम अपने कल-कारखानों के रसायनयुक्त अत्यन्त खतरनाक प्रदूषित पानी को फैक्ट्री के अन्दर ही बोरिंग करके उच्च दबाव से उसे धरती के अन्दर भूगर्भीय जल में धड़ल्ले से मिला देते हैं आदिआदि।
इस बुरी स्थिति में हमारे देश में निश्चित रूप से प्रदूषण बढ़ेगा ही, क्योंकि उक्तलिखित तरह से हम वे सभी (कु)कृत्य करते हैं, जिससे हर तरह का प्रदूषण अधिकतम् बढ़े, फिर हम हर साल प्रायः प्रिंट और दृश्य मिडिया के माध्यम से खूब शोर मचाते हैं। हम प्रदूषण कम करने के लिए विदेशों के उन्नतिशील देशों से सबक क्यों नहीं लेना चाहते ! हम कारों की जगह सुव्यवस्थित और सुगम्य सार्वजनिक परिवहन यथा गैस या विद्युत चालित बसें, ट्रामें और मेट्रो का अधिकतम् उपयोग करने की दिशा में क्यों नहीं बढ़ते, पराली की समस्या को किसानों पर इकतरफा आरोप न लगाकर उसका निस्तारण वैज्ञानिक तरीके से क्यों नहीं करते, कूड़े को इधर-उधर न छिपाकर उसका स्थाई समाधान क्यों नहीं करते ?अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण की वजह से ग्लोबल वार्मिंग से 2050 तक हिमालय के सारे ग्लेशियर पिघल जाएंगे और मुबंई जैसे समुद्र तटीय शहरों के 30 करोड़ लोगों के घर समुद्र में समा जाएंगे। कहावत है कि पक गये फोड़े को चीर-फाड़कर डॉक्टर ठीक कर देता है, नहीं तो उसका जहर पूरे शरीर में फैलकर पूरे शरीर को विनष्ट कर सकता है, उसी तरह समस्याओं को छिपाने से वे बढ़ती ही जातीं हैं उसका हमें स्थाई समाधान तलाशना ही होगा

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com