पहल
”अच्छा हुआ आप लोग ऑस्ट्रेलिया चले गए, दिल्ली तो गैस चैंबर बनी हुई है, सांस लेना तक मुश्किल हो गया है.” सुबह-सुबह फेसबुक मैसेंजर पर सुमित का मैसेज था.
”दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर केंद्र और केजरीवाल सरकार के बीच जुबानी जंग” अखबार खोलते ही समाचार की सुर्खी देखी.
”जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, हमें पराली जलानी होगी” पराली जलाने पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद भारतीय किसान यूनियन ने कहा है.
इस तरह तो वायु प्रदूषण का हल निकलने से रहा. हल निकालने के लिए किसी को तो पहल करनी होगी न!
”सचमुच आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर किसी को तो पहल करनी ही होगी न!” विनीता को बहिन सुनीता के साथ रिश्तों की खटास आज कुछ ज्यादा ही खट्टी लग रही थी.
”विनीता ने पिछले साल मुझे बर्थडे विश नहीं किया था.” सुनीता नाराज थी.
”सुनीता ने आज मुझे शादी की सालगिरह विश नहीं की!” विनीता को बात चुभ गई थी.
”मैंने विनीता से लिया कर्ज लौटाया तो उसने चुपचाप ले लिया, एक बार भी यह नहीं कहा कि हाथ तंग हो तो फिर कभी दे देना.” सुनीता ने दूसरी बहिन को कहा था.
”मैंने तो उसको पहले ही दस बार कहा था, कि मुझे कोई जल्दी नहीं है, जब सहूलियत हो तब दे देना.” विनीता अपनी जगह सही थी.
”विनीता के बिना मजा नहीं आता.” सुनीता के घर पार्टी पर सब भाई-बहिन और उनके बच्चे जुटे थे, पर आंखों से उसकी उदासी साफ झलक रही थी.
”हर गांठ को सुलझाया जा सकता है,
रफ़ू से चलती है जिंदगी.”
सुनीता ने खुद से कहा. उसकी खिन्नता भी कहां कम थी! उसने रिश्तों को रफ़ू करने की पहल करने के लिए मोबाइल उठा लिया था.
सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप से काम नहीं बनते, किसी को तो रिश्तों को रफ़ू करने की पहल करनी होती है, विनीता ने यही किया था. कम-से-कम उसका मन तो यह सोचकर शांत हो गया, कि मैंने अपनी तरफ से रिश्तों को रफ़ू करने की कोशिश की. आखिर किसी को तो पहल करनी ही होगी न!