कविता – मुस्कान
कैसे हँसी विलुप्त हो रही
बेवजह जाने क्यों गूम हो रही
दस्तक अब सुनाई नहीं देते कभी
अब जो बिछड़े क्या मिलेंगे कभी।
पूछती हूँ दिल से बार बार
क्यों नहीं करते थोड़ा चमत्कार।
जिंदगी ना मिलेगा दुबारा
क्यों कर परेशान है दिल हमारा।
उसने कहा मत परेशान हो
क्या प्रोढ़ावस्था में भी नादान हो।
हँसने खेलने की कभी उम्र ना बीते
सजग रहकर निभाओ सारे रिश्ते।
धीरज धरम् मित्र सब तेरे
दिन बहुरेंगे सुबह-सवेरे।
आस का दीपक जलायेंगे
खोई मुस्कान वापस लायेंगे।
खाली बैठे वह सोचते रह गए
कुछ बेहतर करने के लिए
वक्त बीतता गया
कुछ भी हाथ नहीं आया
कैसे कोइ खुद की जिंदगी से
खिलवाड़ करता है
परिंदा कहाँ उड़ने से पहले
अपनी ऊड़ान तौलता है ।
दुनिया का हर जीव सीख देता है
फिर भी कभी कोई क्यों नहीं
अपने दिल की सुनता है ?
मंजिल का पता नहीं पर दौड़ रहे हैं
अपने ही आशियाने से दूर हो रहे हैं
श्रम साधने की कला सीखी नहीं जाती
वह तो एक जज्बा है बस जुनून चाहिए ।
मुस्कान की ताकत समझते ही
मंजिल नज़र आ जायेगी।
जिंदगी फिर मुस्कुरायेगी।
— आरती राय