लघुकथा

संवेदना

बात उन दिनों की है जब मैं एक प्राइवेट स्कूल में पदस्थ थी।हमारे स्कूल की नियमावली में एक नया बिंदु जोड़ा गया कि छात्र छात्राएं आपस में टिफिन शेयर (सांझा) न करें।लागू होने वाले इस नियम के बारे में जानकर हम सब को बड़ा अजीब लगा और आश्चर्य भी।क्योंकि हमारे समय में तो मिल बांटकर खाने तथा प्रेम व्यवहार सिखाने के लिए टिफिन शेयर करने पर जोर दिया जाता था।बहरहाल, सुनने में यह आया कि कुछ अभिभावकों के द्वारा यह शिकायत की गई थी कि उनके बच्चे दूसरों से टिफिन शेयर करने के बाद बीमार पड़ गए थे इसलिए इस समस्या और शिकायत से बचने के लिए यह नियम लागू किया गया था। सभी क्लास टीचर्स को यह सख्त हिदायत दी गई थी कि बच्चे टिफिन शेयर न कर पाएं।हम लोगों ने भी नज़र रखना शुरू कर दिया। मध्य अवकाश में बच्चों को क्लास रूम में ही टीचर की निगरानी में लंच करने के लिए सूचना दी गई। मेरी क्लास की चार लड़कियां श्रेया, प्रियांशी, समीक्षा और अनुजा एक साथ बैठकर लंच किया करती थी और आपस में टिफिन भी शेयर करती थीं। मैंने देखा कि निर्देश दिए जाने के बाद भी उन्होंने इस बात को अनसुना करते हुए खाना बांटकर खाया। मैंने उन चारों को अलग से बुलाकर दोबारा ऐसा न करने की हिदायत दी। सभी सिर झुकाकर खड़ी रही और कोई उत्तर नहीं दिया। अगले दिन फिर वही हुआ लेकिन खुलेआम न होकर छिप छिप कर ।मैंने मन ही मन सोचा कि कुछ दिन तक बिना टोके देखती हूं कि ये लोग ऐसा कब तक करते हैं? चारों यह सोच कर खुश थीं कि मैम को पता नहीं चल पा रहा है।

एक सप्ताह तक लगातार यह प्रक्रिया चलती रही।
अगले सोमवार भी जब उन्होंने यही किया तो मैंने उन चारों को फिर से अपने पास बुलाया और इसका कारण बताने के लिए कहा। सभी चुप थीं।जब मैंने डांटकर प्रियांशी से इसका कारण पूछा कि आखिर इतना मना करने के बाद भी तुम लोगों ने नियम का पालन क्यों नहीं किया तो उसने जो उत्तर दिया उसे सुनकर मैं निरुत्तर हो गई। वास्तव में हाल ही में श्रेया की मम्मी की मृत्यु हुई थी ।घर पर खाना बनाने वाला कोई नहीं था । श्रेया के पापा हो खाना बनाना नहीं आता था और सुबह का स्कूल होने के कारण होटल से भी खाना नहीं आ पाता था । इसके अतिरिक्त श्रेया का भाई भी बहुत छोटा था जिसकी देखभाल भी उसके पापा को करनी पड़ती थी ।ऑफिस और बच्चों की देखभाल के चलते उन्हें इतना समय नहीं मिल पा रहा था कि वे एक खाना बनाने वाली बाई की व्यवस्था कर सकें।इसलिए सभी सहेलियां अपने-अपने टिफिन में एक एक अतिरिक्त रोटी या पराठा लेकर आती थी जिससे कि वे श्रेया को दे सकें। मेरी दृष्टि श्रेया के ऊपर पड़ी तो उसकी आंखों में आंसू छलक रहे थे ।उसने मुझसे कहा ,”मैम ,प्लीज इन लोगों को कोई सजा मत दीजिएगा इन्होंने जो कुछ भी किया वह मेरे कारण किया कल से ऐसा नहीं होगा।” मैं उनके बीच के प्रगाढ़ प्रेम को स्पष्ट देख पा रही थी।मैंने उन चारों को गले से लगा लिया। वे सभी भावुक हो गई। मैंने उनसे कहा,” कल से श्रेया के टिफिन की जिम्मेदारी मेरी है जब तक कि उसके पापा खाना बनाने वाली बाई की व्यवस्था नहीं कर लेते हैं।इससे नियम भी नहीं टूटेगा और समस्या भी हल हो जाएगी। “श्रेया एक बार फिर मुझसे लिपट गई।
— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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