कविता

जोरू का गुलाम

मात पिता की सेवा ना कर जोरू की बाहों में सो गया !
बेकार है तेरा जीवन तू तो जोरू का गुलाम हो गया !
जोरू कहे तो हां में हां मां बाप कहे तो ना करते हो !
मां बाप से अपने डरते नहीं पर जोरू से तुम डरते हो !
डूब मरो चुल्लू भर पानी में तेरा जीवन शर्मसार हो गया !
भूल गया है मात पिता को तू जोरू का गुलाम हो गया !
भूल गया जन्म देने वाली उस मां को ओर जोरू पे मरते हो !
छोड़ दिया मात बाप को बुढ़ापे में जोरू की जी हजूरी करते हो !
नर्क बना कर जीवन मां बाप का जोरू के सपनों में खो गया !
अब शर्म नहीं आती तुझे क्योंकि तू जोरू का गुलाम हो गया!
— अमित राजपूत

अमित कुमार राजपूत

मैं पत्रकार हूं निवासी गाजियाबाद उत्तर प्रदेश