मुक्तक/दोहा

जाड़े के दोहे

जाड़ा बनकर के कहर,लगता लेगा जान ।
बना हुआ है काल यह,इसको लो पहचान।

कहीं बर्फ,कहीं जल गिरे,गीला हर इनसान ।
तेगों सी लगती हवा,जाड़ा है हैवान ।।

सूरज भी घबरा गया,ओढ़े पड़ा लिहाफ ।
सिकुड़ा इंसां हो गया,पूरा-पूरा हाफ ।।

नया वर्ष है शीतमय,सर्दी से भयभीत ।
शीत करे षड़यंत्र अब,दुश्मन की बन मीत ।।

कम्बल सबको भा रहे,टोपी की जयकार ।
मफलर अपनाकर सभी,बने हुये सरदार ।।

चाय,पकौड़े चल रहे,उनने पाया भाव ।
सिगड़ी,गुरसी हिट हुये,घर-घर जलें अलाव ।।

देर सुबह तक रात है,सोता हर इनसान ।
बिस्तर अति प्यारा लगे,करता हर गुणगान ।।

रेलगाड़ियां मंद सब,कोहरे का आगोश ।
सड़कों ने तो धुंध से,खोया सारा होश ।।

जाड़ा हिटलर बन करे,नित ही अत्याचार ।
बेचारा इंसान तो,हुआ बहुत लाचार ।।

जाड़े से रक्षा करो,हे प्रभु-हे भगवान ।
जतन करो बच जाय अब, इंसानों की जान ।।

— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com