गीतिका/ग़ज़ल

गुंजन की ग़ज़ल

मुद्दत से चाहते थे वो हो गयी हमारी।
समझो न इसको कोई बाज़ीगरी हमारी।

वो कह रहे हैं हमसे मरते हैं तुम पे कब से
उनको तो भा गयी है ये सादगी हमारी।

गफ़लत में रात बीती गफ़लत में दिन ये गुज़रा।
ग़फलत में जी रहे थे, ग़फलत ये थी हमारी

सीरत ने उनको लूटा,सूरत ये हाय तौबा
ओढ़े नकाब बैठी आरास्तगी हमारी।

आलम ये सारा हमसे जल-भुन के ऐसा बैठा।
*गुंजन* न रास आयी उसे ज़िन्दगी हमारी।

गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*