लघुकथा

फलवाला ‘पद्मश्री’

”गृह मंत्रलाय से मुझे फोन आया, कि आपको ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया जाता है, लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा.” हरेकाला हजाब्बा ने अपने पड़ोसी से कहा. कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिला के फल विक्रेता हरेकाला हजाब्बा के पड़ोसी ने उसे सरकार की तरफ से आई इस खुशखबरी की बधाइयां दीं.

”भाई, विश्वास क्यों नहीं हो रहा?” पड़ोसी ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा- ”तूने काम भी तो इतना शानदार किया है, कि जो सुने हैरान हो जाए! खुद कभी स्कूल नहीं गया और फल की अपनी छोटी-सी दुकान से हुई आमदनी से पहले तूने अपने गांव के बच्चों के लिए प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल बनवाया और अब एक विश्वविद्यालय बनवाने की तैयारी में है.” पड़ोसी को भी अपने इस पड़ोसी पर गर्व हो रहा था.

”तूने तो सारी बातें याद करवा दीं!” 68 वर्षीय हरेकाला ने अपनी यादों का पिटारा खोलते हुए कहा- ”एक दिन एक विदेशी कपल मुझसे संतरे खरीदना चाहता था. उन्होंने कीमत भी पूछी, पर मैं समझ नहीं सका! वह कपल चला गया। मुझे बेहद बुरा लगा.” हरेकाला जैसे उस पुराने समय में पहुंच गया था.

”यह मेरी बदकिस्मती थी कि मै स्थानीय भाषा के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं बोल सकता. इसलिए मुझे यह ख्याल आया कि गांव में एक प्राइमरी स्कूल होना चाहिए ताकि हमारे गांव के बच्चों को कभी उस स्थिति से गुजरना न पड़े जिससे मैं गुजरा हूं.’’ खुशी की आंसुओं से हरेकाला की आंखें नम थीं.

”मुझे याद है भाई,” पड़ोसी ने कहा- ”तूने सारे गांववालों को समझाया और उनकी मदद से स्थानीय मस्जिद में एक स्कूल शुरु किया. तू स्कूल की साफ-सफाई भी करता था और बच्चों के लिए पीने का पानी भी उबालता था.”

”मुझे भी याद है, छुट्टियों के दौरान मैं गांव से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत कार्यालय जाता और बार-बार अधिकारियों से शैक्षणिक सुविधाओं को औपचारिक रूप देने की विनती करता था. आखिर मेरी मेहनत रंग लाई. जिला प्रशासन ने साल 2008 में दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत के अंतर्गत नयापुडु गांव में 14वां माध्यमिक स्कूल बनवाया.”

”अरे भाई, हजाब्बा गांव में फिलहाल एक सेलिब्रेटी से कम नहीं है. मंगलौर यूनिवर्सिटी के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम में उनकी जिंदगी की कहानी पढ़ाई जाती है. ताकि स्टूडेंट्स उनसे प्रेरणा ले सकें. उन्हें कई स्थानीय अवॉर्ड्स मिल चुके हैं.” पास से गुजरते हुए हरेकाला के एक मित्र ने कहा.

”मुझे नहीं पता, कि सेलिब्रेटी क्या होता है, मैं तो बस फलवाला हूं. साल 2014 से डिप्टी कमिश्नर एबी इब्राहिम ने यह विचार रखा था कि हरेकाला हजाब्बा पद्मश्री सम्मान के काबिल हैं. साल 2015 में भी उपायुक्त ने उनसे कहा था कि उन्होंने मेरा नाम केंद्र सरकार को भेज दिया है, लेकिन उसके बाद मुझे नहीं पता क्या हुआ!”

”अब तो तू फलवाला ‘पद्मश्री’ है.” पड़ोसी और मित्र दोनों ने एक साथ कहा.
तीनों का मन-मयूर नर्तन कर रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फलवाला ‘पद्मश्री’

  • लीला तिवानी

    समाज में कुछ लोग चुनौती को स्वीकार कर, अनेक बाधाओं को पार कर, बरसों तक चुपचाप समाज-सेवा के अपने काम में लगे रहते हैं. उन्हें सिर्फ अपने काम की, समाज-सेवा की धुन होती है. उनको किसी पुरस्कार या सम्मान की दरकार नहीं होती, पुरस्कार और सम्मान को उनकी दरकार होती है. पुरस्कार और सम्मान उनको ढूंढते हुए उनके पीछे आते हैं, क्योंकि उनका काम बोलता है. विनम्र फलवाले हरेकाला हजाब्बा के साथ यही हुआ है, जिससे वह हैरानी और विनम्रता से आज भी अपने को फलवाला ही कहता है, भले ही दुनिया उन्हें फलवाला ‘पद्मश्री’ की उपाधि से विभूषित करती है.

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