कविता

दुख के अनगिनत रूप

दुख के अनगिनत रूप है,
वह दबे पाव आता है,
जिंदगी में उथल-पुथल  मचाता है,
दुख अपने खट्टे मीठे प्रभाव दे जाता है।
हम तुमको जानते हैं,
दुख हमको जानता है।
दुख किसी भी रूप में आ जाता है,
हमें एक नया अनुभव दे जाता है।
दुख नमक की तरह होता है,
पूरे जीवन में खारापन छोड़ जाता है।
दुख एक ऐसी चिड़िया है,
जो इसी ताक में रहती है,
थोड़ी सी जगह मिले तो,
हम अपना आशियाना बना ले।
 दुख को सुनना और सहना,
हमारी मजबूरी भी है और नियति भी।।
— गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384