पर्यावरण

समूची विश्व मानवता के लिए एक अति घातक हथियार की ओर बढ़ते कुछ देश

मानव के ज्ञात इतिहास से भी पूर्व समय से ही एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को या मनुष्यों का एक समूह मतलब राज्य या कबीला दूसरे राज्य या कबीलों को, जमीन के लिए, धन के लिए या स्त्रियों के लिए, झगड़ता आया है। दुनिया के किसी भी देश का इतिहास उठाकर, पढ़ लिजिए, मानव इतिहास सदा रक्तरंजित, हत्याओं, बर्बरताओं से भरा पड़ा है। प्राचीन काल के प्रस्तरकाल में प्रतिद्वंद्वी कबीले एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर, लाठी-डंडों से, गुलेल से, तीर चलाकर, तेज भालों और तलवारों से अपने दुश्मन की हत्या करते रहे थे। कालांतर में बारूद का अविष्कार होने के बाद, तोपों, बंदूकों से, दूर से ही हत्याएं होने लगीं, कथित प्रगति के साथ, मारक हथियारों की मारकदूरी और सटीकता और अचूक होती गई, नये-नये हथियार बनने से सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर अपने मिसाइलों, इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों से परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, न्यूट्रॉन बम आदि से पलक झपकते ही, अपने दुश्मन के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता मनुष्य ने अर्जित कर लिया।
जब से मानव ने कोशिकाओं में स्थित गुणसूत्र की खोज की है, उसके बाद माइक्रो बायलोजिकल वैज्ञानिक कोशिकाओं में स्थित गुणसूत्रों की डीएनए में छेड़छाड़ करके, किसी भी जीव, वनस्पति या रोगों के जीवाणुओं के गुणधर्म को बदले जाने के क्रियाकलाप करने लगे, कृषि, मेडिकल आदि क्षेत्रों में इस तकनीक से, क्रांतिकारी बदलाव हुए, परन्तु दुःखद रूप से अच्छे कामों के साथ बुरे और बड़े-बड़े देश एक-दूसरे के विरूद्ध बड़े जनसंहार के लिए, इस तकनीक का प्रयोग करने लगे, जिसे ‘जैविक हथियार ‘कहा जाता है। जैविक हथियारों के होड़ में वैसे तो गुपचुप तरीके से बनाने में दुनिया के बहुत से देश सम्मिलित हैं, परन्तु बड़े स्केल पर इसमें अमेरिका और चीन सबसे आगे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, अभी चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस के संक्रमण से सैकड़ों लोगों की अमूल्य जाने गईं हैं, वे ऑकस्मिक और प्राकृतिक तथा स्वाभाविक न होकर, चीन द्वारा जानबूझकर वायरसों के जीन में बदलाव कर, उन्हें और ज्यादे खतरनाक बनाने वाली वैज्ञानिक वायरस प्रयोगशाला पी-4 में तैयार इस अत्यन्त ख़तरनाक वायरस के लीक होकर, बाहर आने से हुई है। इस बात को बल इसलिए मिल रहा है, क्योंकि इसी वुहान शहर से 1996 में ‘बर्ड फ्लू ‘ फैला था, फिर 2003 में ‘सॉर्स ‘ नामक वायरस का अचानक प्रकोप हुआ था, उसके बाद 2012 में ‘मर्स ‘नामके वायरस फैले थे, उक्त इन वायरसों द्वारा फैले संक्रमण से दर्जनों देशों के हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने बहुत पहले जेनेटिक इंजिनियरिंग से खिलवाड़ करने के, मानवप्रजाति पर पड़नेवाले भयावह परिणाम की चेतावनी दे दिए थे, परन्तु चीन, अमेरिका और इजरायल जैसे देश, विभिन्न तरह के रोगों के खतरनाक किटाणुओं व वायरसों के जीन में हेर-फेरकर, उन्हें मानवप्रजाति के लिए और अत्यधिक खतरनाक बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। उदाहरणार्थ अमेरिका के विस्कॉन्सिन मेडिकल यूनिवर्सिटी के एक वैज्ञानिक ने ‘स्वाइन फ्लू ‘ के जीन में परिवर्तन करके, उसे इतना खतरनाक बना दिया कि उसका मुकाबला मनुष्य का इम्यून सिस्टम के बस की बात नहीं है, न ही उससे बचाव के लिए कोई दवा है, न कोई टीका है !
कल्पना करें ऐसे खतरनाक जीवाणुओं की भारी मात्रा में निर्माण करके, अपने शत्रु देशों के लोगों पर अपने गोपनीय ड्रोन विमानों या इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के वारहेड में लगातार गुपचुप तरीके से छिड़काव कर दें, जिनकी न कोई दवा है, न टीका, न मानव शरीर में उनके विरूद्ध कोई प्रतिरोधक क्षमता, तो उस भयावह मंजर की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है, क्योंकि ये खतरनाक एक कोशिकीय विषाणु पलक झपकते ही खतरनाक ढंग से संक्रमित, बिखण्डित होकर लाखों-करोड़ों मनुष्यों को अपने आगोश में लेकर, उन्हें चुपचाप मौत की नींद सुला देंगे।
इसलिए इस तरह के भयानक प्रयोग, चीन के कोरोना वायरस की तरह, उस सृजनकर्ता देश सहित, समस्त मानवप्रजाति के लिए कहीं भयंकरतम् अभिषाप न बन जाय, इसलिए इस प्रकार के मानवहंता राक्षसी प्रवत्ति पर हर हाल में रोक लगनी ही चाहिए, जनकल्याणकारी वैश्विक संगठनों को इस प्रकार के, ख़तरनाक जैविक हथियार बनाने के कुकृत्य पर, हर हाल में रोक लगाने के लिए, अभी से अपने जोरदार अभियान और संघर्ष छेड़ देना चाहिए ताकि वैश्विक स्तर पर कोई बड़ा हादसा होने से पूर्व ही व पहले से ही हजारों परमाणु, हाईड्रोजन व नाइट्रोजन बमों की बारूद की ढेर पर बैठी, यह असुरक्षित दुनिया, भविष्य में और ‘असुरक्षित ‘न हो सके।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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