गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बेसबब दीपक जलाया धूप में,
और सितारों को बुलाया धूप में।

दिन उजाले छोड़कर सोता रहा,
रात आई और जगाया धूप में।

कैसा नकली ये ज़माना हो गया,
कुछ कहा और कुछ दिखाया धूप में।

इश्क़ भी झुलसा हुआ जैसा लगे,
फिर किसी ने दिल लगाया धूप मे

सिर्फ बेटा इसलिए नाराज़ है,
बाप ने पैदल चलाया धूप में।

उतना ही बस काम तेरे आएगा,
जितना कर मेहनत कमाया धूप में।

मुश्किलें ‘ जय’ पास न आ पाएंगी,
साथ ग़र हो मां का साया धूप में।

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से