दोहा गीतिका
आँखो से मोती गिरा, हुआ मगर बेकार
कीमत आँसू की नहीं, मत कर चीख पुकार
कोन देखता है भला, दुखते कितने घाव
तेरे दुख से अब उसे, न कोई सरोकार
नजदीकी अब ना रही, वो ना तेरे पास
बेशक छोटा हो गया, दुनिया का आकार
जिसे देखिये भागता, कहीं नहीं है चैन
दोड़ धूप की जिन्दगी, जिसमें खोया प्यार
कब दिन हो कब रात हो, शाम पता ना रात
हाल चाल लेना यहाँ, हुआ बहुत दुश्वार
— शालिनी शर्मा