कविता

न्याय में देरी

अक्सर न्याय में देरी होने से,
इंसान का हौसला जाता टूट।
प्रायः न्याय होने तक उसका,
जीवन से साथ जाता है छूट।।
न्याय में विलम्ब हो होने का,
जिम्मेदार ! आखिर है कौन।
जानते तो हम सभी  लोग हैं,
फिर  भी  सब रहते हैं मौन।।
न्याय समय से नहीं मिलना,
अन्नाय के होता  है  समान।
फिर क्यों ! जल्दी न्याय का,
होता नहीं  कोई प्राविधान।।
जब  मिलता है  न्याय  हमें,
तब पाते  हैं  हम अधिकार।
न्याय  ही वह अस्त्र  शस्त्र है,
अपराधों पर करते हैं प्रहार।।
न्याय सब को ही शीघ्र मिले,
देर से न्याय न होता उचित।
सरकार और न्यायपालिका,
इस पे कदम उठाएं समुचित।।
मरते समय तक  न्याय की,
हम ग़रीब  न छोड़ते आस।
आगे पीढ़ी मुकदमा  लड़ते,
न्याय न पाने से हो निराश।।
कोर्ट में  तारीख दर तारीख,
मुकदमों में बदलती रहती है।
न्याय की आस में दिनों दिन,
मेरी एड़ियां घिसती रहती है।।
— लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

सहायक अध्यापक मोहल्ला-बैरिहवा, पोस्ट-गाँधी नगर, जिला-बस्ती, 272001-उत्तर प्रदेश मोबाइल नं-7355309428