दस्तक
अपने सपनों को हकीकत का जामा पहनाने जब ज़ाकिर ने भरे पूरे परिवार को गांव में छोड़ महानगरी की ओर पलायन किया, तो उसका मन अक्सर परिवार को याद कर बेचैन हो उठता था। पर धीरे – धीरे शहर की चकाचौंध वाली जिंदगी उसे इतनी रास आई कि वह सब पुराने आचार – विचार भूल गया ।
पिछले कुछ दिनों से उसकी तबियत नासाज थी। रिपोर्ट आने पर पता चला कि एचआईवी के रूप में मौत उसके दरवाजे पर दस्तक दे चुकी थी। आज वह फिर से पलायन कर रहा था, अपनों के साथ के लिए ।
अंजु गुप्ता