कहानी

कहानी – समाधान

अनुपमा की प्रिय शिष्या ऋचा, आज क्लास में गुमसुम बैठी थी ।
“ऋचा तुम क्लास में नहीं हो! तुम्हारा ध्यान किधर है?”
“जी मैम” उसने हड़बड़ा कर अनुपमा की तरफ देखा । गहरे सांवले रंग की ऋचा के औसत नक्श थे पर आंखें अत्यंत आकर्षक थीं। जिनमें सदा अनुपमा ने उत्साह की चमक देखी थी। सहज, सरल, आत्मविश्वास से दप दप करती । ऋचा हमेशा क्लास में टॉप थ्री में रहती थी । पर अभी कुछ दिनों से वह बुझी बुझी सी दिखने लगी थी । छुट्टियों के बाद अभी-अभी कक्षाएं शुरू हुई थी ।
अनुपमा नौवीं से लेकर बारहवीं तक की छात्राओं को वनस्पति विज्ञान पढ़ाती थी । इस उम्र में शरीर में बहुत से परिवर्तन होते हैं तथा बहुत से भावनात्मक उतार-चढ़ाव भी । विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी इसी उम्र में ज़ोर पकड़ता है। बचपन से मन में पड़ी गांठों का, अगर इस उम्र तक निदान नहीं हुआ तो वह अत्यंत जटिल रूप धारण कर सामने आती हैं। यही सब चिंतन करते हुए, अनुपमा ने भोजनावकाश में, ऋचा को अपने कमरे में बुला भेजा ।
” ऋचा बेटा, कोई बात तो जरूर है जो तुम अपने मन में दबा कर बैठी हो, तुम भी मेरी बेटी गरिमा जैसी ही हो और तुमसे मेरा खास लगाव भी तुम जानती हो।” ऐसे शब्दों से उसके चेहरे पर कुछ सिलवटें उभरी और आंखें डबडबा आईं। अनुपमा अपनी कुर्सी से उठकर सामने उसकी कुर्सी के पास आई और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा– वह रो पड़ी और अनुपमा ने उसे कुछ देर रोने दिया। तब कुछ हल्की होने पर उसने कहा–
” मैम, मेरा रंग सांवला है, क्या यह मेरा दोष है?”
” नहीं, बिल्कुल नहीं, यह तो ईश्वर प्रदत्त है, क्यों, किसी ने कुछ कहा तुम्हें?”
” मैम, मेरे और बहन भाई गोरे हैं, मां पापा भी। बचपन से कुछ रिश्तेदारों को कहते सुनती थी, कि इसका रंग न जाने किस पर गया है पर उस वक्त मुझे उनका ऐसा कहना खास बुरा नहीं लगता था। लेकिन पिछले 2 सालों से मेरे पापा ही ऐसा बोलते हैं कि, ”इसकी शादी में तो हमें बहुत दिक्कत आने वाली है; पहले मुझे ऐसा लगता था, बड़ी होते ना होते कुछ रंग साफ हो जाए शायद।”
वह थोड़ा सा रुकी, अनुपमा उसके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी, उसने कहना जारी रखा–
” और मुझे ऐसा लगता है कि इसी वजह से वह मुझे किसी भी बहाने से बेवजह ही डांटते रहते हैं। मैं आशा करती थी कि मम्मी उन्हें समझाएं , मुझे बचाएं पर मम्मी चुपचाप सुनती हैं। कभी-कभी वह भी अफसोस जताती हैं और मैं छुप छुप के रोती हूं।”
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” अब कुछ दिन से मेरे अंदर बहुत बुरे बुरे ख्याल आने लगे हैं।”
उसकी सौम्य आंखों में क्षणभर को कुछ क्रूर से भाव उभरे जैसे उसकी कोमल संवेदनाएं कुंद हो रही हैं और वहां भर रही है एक कड़वाहट।
” मेरा मन करता है कभी-कभी कि सारी दुनिया को आग लगा दूं या फिर खुद को ही खत्म कर लूं”
” नहीं बेटा, ऐसी बातें कायर लोग करते हैं और तुम्हारे अंदर वृहत संभावनाओं के बीज मैं देख रही हूं। हर समस्या का समाधान है, इसका भी जरूर होगा।”
ऐसा कहते कहते अनुपमा यादों के झरोखों से पीछे अतीत में चली गई। कोई छह सात साल पुरानी घटना होगी। अनुपमा उस वक्त इलाहाबाद में पोस्टेड थी। एक रात उसके पड़ोसी के घर से रोने धोने की आवाजें आ रही थी। उस वक्त वह उनकी डोरबेल बजाती रही पर दरवाजा नहीं खुला। लेकिन अगले दिन दो बेटियों, पूजा और आरती की मां ने जो बताया, वह दिल दहलाने वाला था। पूजा लखनऊ शहर में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती थी। ग्यारहवीं की छात्रा, जैसी प्यारी सूरत वैसी सीरत। मां बाप ने अच्छे संस्कार दिए थे। वह पढ़ाई में तो अव्वल थी ही, साथ ही बहुमुखी प्रतिभा की धनी भी थी। सबका सहयोग करने वाली और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाली। इसलिए वह अपने सारे दोस्तों में बहुत प्रिय थी। इसके विपरीत उसकी रूममेट पूनम जो देखने में भी सुंदर न थी।रंग भी दबा हुआ और उसी तरह गुणहीन भी थी या शायद अपनी सूरत को लेकर उसके अंदर जो हीन भावना थी, उन्हीं कुंठाओं की वजह से वो ईर्ष्यालु और झगड़ालू भी हो गई थी। पूजा को नीचा दिखाने के लिए कुछ ओछी हरकतें कर चुकी थी वह। इसलिए अगली दफा उसकी वार्डन से मिलकर, उसका रूम चेंज कराने के लिए उसके मां-बाप आने वाले थे। पर उसके पहले ही यह दुर्घटना घट गई।
उस लड़की पूनम ने कॉलेज के ही दो मित्र लड़कों को चोरी से कमरे में बुलाया। पूजा को धोखे से कोई नशीली दवा दी। और उसके बाद दोनों लड़कों ने वहीं उसकी रूममेट, पूनम की उपस्थिति में ही बारी बारी से पूजा का यौन शोषण किया। हद यह थी कि पूनम उसे गालियां भी देती रही पूरे वक्त “जा अब जाकर आवाज उठा अन्याय के खिलाफ।”
6 महीने तक पूजा सदमे से कुछ बोल ना सकी। जो सुनता वह भय-आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया देता कि इतनी क्रूर सोच एक लड़की की कैसे हो सकती है। और उसके बाद, केस वगैरह चलने से पूनम को सुधार गृह में भेज दिया गया। पर क्या यही समाधान था? यह लड़की पूनम क्या जन्म से ऐसी होगी। या उसे अपनी रूपविहीनता की वजह से जो जिल्लत उठानी पड़ी, उसके बाद उसने अपने गुणों पर कभी काम ही नहीं किया और कुंठाओं वश ऐसी बन गई।
” मैम, अब मुझे सारी सुंदर लड़कियों से चिढ़ होने लगी है, मेरी बहनों से भी, और मुझे अपनी इस सोच पर ग्लानि भी होती है, पर मैं क्या करूं, अंदर एक तूफान है।”
ऋचा के इन शब्दों के साथ अनुपमा वर्तमान में लौट आई। उसे लगा कि ऋचा के अंदर एक ज्वालामुखी बन रहा है जो फटना चाहता है। क्या यह इतनी प्यारी सी गुणी लड़की ऋचा भी उस पूनम में तब्दील हो सकती है?
“हां, अगर इसके मन का सही वक्त पर इलाज नहीं हुआ तो, ऐसा हो सकता है। और इलाज तब होगा जब उसके मां-बाप स्वयं यह समझेंगे कि उनकी बेटी की पहचान सिर्फ चेहरे और रंग से नहीं है। असली सुंदरता तो हमारे भीतर छुपी होती है और वह हमारे सद्गुणों से होती है। जब मां-बाप यह समझ कर उसे स्वीकारेंगे, उसकी सराहना करेंगे और इस तरह उसका आत्मविश्वास बढ़ाएंगे। इस उम्र में कोमल मन पर लगने वाले आघात हमेशा के लिए जीवन की दिशा तय कर देते हैं। बाल मन की समझ ना होने से जाने अनजाने, स्वयं मां-बाप ही, अनंत संभावनाओं से भरे हुए एक जीवन को अंधेरे गर्त में पहुंचा देते हैं जहां उसका अंत होता है इसी तरह से। एक अपराधी जन्म लेता है समाज में।
“ऋचा के माता-पिता को मैं यह समझाऊँगी,” सोचते सोचते अनुपमा वर्तमान में लौट आई।
एक बार फिर से उठकर उसने ऋचा के सिर पर हाथ फेरा और उसे दिलासा दिया कि सब ठीक हो जाएगा।
” ऋचा मैं आज ही शाम को तुम्हारे घर आकर, तुम्हारे मम्मी पापा से मिलूंगी और फिर सब ठीक होगा।”
एक दृढ़ विश्वास से अनुपमा के चेहरे पर चमक आ गई और होंठ बुदबुदाए –
” हां, यही सही समाधान है।”

— डॉ वंदना मिश्रा
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डॉ. वंदना मिश्रा

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