मैं चली हूँ हमेशा सम्हल कर
अब देखूंगी काँटों पे चल कर
रौशन मैं तिमिर को करूंगी
भले मिट जाऊँ बाती सी जल कर
उफ्फ तक न करूंगी सफर में
पीर बह जाये चाहे पिघल कर
तुझमें मैं ढली धीरे-धीरे
सीख ली मैं हुनर खुद में गल कर
कभी तो मेरी भी होगी पूजा
ज़रा देखूंगी मूरत में ढल कर
प्रीत की रीत मैंने निभाई
जिंदगी के जटिल प्रश्न हल कर
प्यार निश्छल रहेगा किरण का,
भले जितना भी तू मुझसे छल कर