अधिगम सम्बन्धी समस्यायें और उनका समाधान
[बदलते परिवेश निरन्तर नये- नये परिवर्तनों घर-परिवार एवं विद्यालय के दृष्टिकोण में नूतन आयामों के स्पर्श से और भी समस्याओं के रूप हो सकते हैं। बालक से सम्बन्धित समस्यायें कोई भी हों उनके समाधान हेतु विद्यालय एवं माता-पिता के आपसी सहयोग से सफलता पायी जा सकती है।]
प्राथमिक स्तर के बालकों में अधिगम का माता-पिता के बाद किसी से सम्बन्ध है तो वह विद्यालय है। विद्यालय में शिक्षक की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। जोकि यदि अपने कर्तव्य के प्रति सजग है तो प्रत्येक समय हर बालक के सम्बन्ध में जानने को उत्सुक रहेगा। उसमें समझने व सीखने की स्थिति का अवलोकन करेगा।उनमें विभिन्नताओं पर दृष्टि डालकर उसका समाधान खोजेगा।
ऐसी स्थिति को समझते हुए प्राथमिक स्तर के बालकों का मैंने गहन अवलोकन अपने शिक्षण काल के समय किया।विभिन्न आयु वर्गों के बालकों से अलग-अलग वार्ता की है।उनकी अधिगम सम्बन्धी अनेकानेक समस्यायें मेरे सामने आयी हैं। जिनमें से मुख्य निम्न हैं:-
—- माता-पिता की शिक्षा उनके पास अपने बच्चों के लिए समय बालकों के विकास की पहली आवश्यकता है। माता-पिता का उचित मार्गदर्शन परामर्श न मिल पाने की स्थिति में बालक अधिगम सम्बन्धी किसी भी समस्या से ग्रस्त हो सकता है।
—- प्रकृति से सामंजस्य की शिक्षा के अभाव में बालक समस्याग्रस्त हो जाते हैं। उनमें एक ओर लगातार ध्यान देने से अरुचि की भावना जाग्रत हो जाती है।
—- कम आयु होने पर भी बालक को निरन्तर माता-पिता द्वारा जब अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तब भी वह अधिगम सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त हो जाता है। जिसमें उससे कहीं अधिक दोष उसकी आयु व माता-पिता का होता है।
—- बालकों की आंखों की कमजोरी अक्षरों का स्पष्ट न दिखना ढंग से पढ़ न सकना भी अधिगम सम्बन्धी समस्या का एक कारण है।निरन्तर आंखों को मलने खोलने व बन्द करने से कहीं पढ़ाई-लिखाई का कार्य सुचारू रूप से किया जा सकता है।
—- माता-पिता का परस्पर झगड़ना बालकों को अधिगम सम्बन्धी समस्या से जकड़ देता है जिससे वह एकान्त चाहने लगते हैं और अनमने से रहने लगते हैं।
— यदि अध्ययन कक्ष का वातावरणशान्त प्रकाशयुक्त हवा और जल की उचित व्यवस्था वाला नहीं हैं तो बालक को सीखने में कठिनाई आयेगी और वह समस्याग्रस्त हो जायेगा। उसमें तनाव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
—- सम्पन्न परिवार से आयी हुई माता-पिता की इकलौती सन्तान कक्षा के अन्य बच्चों में समस्या का कारण बन जाती है। उसका आक्रामक एवं रौब डालने वाला स्वभाव अन्य बालकों को परेशान करता है।
—- यदि बालक का हस्तलेख गन्दा है और उसे उचित मार्गदर्शन न देकर दण्डित किया जा रहा है तो वह अधिगम सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त हो जायेगा।
—- भाई-बहिनों का सकारात्मक सहयोग न मिलने पर भी बालक अपने को परेशान अनुभव करता है अन्ततः समस्यायें उसकों जकड़ लेती हैं।
—- बालक की अभिरुचि को जब निरन्तर अनदेखा किया जाता है उसकी क्षमता एवं रुचि का ध्यान नहीं रखा जाता है तो वह समस्याग्रस्त हो जाता है और ऐसे बालकों का हम चाहते हुए भी किसी भी विषय पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पायेंगे। भले ही बल प्रयोग का सहारा ही क्यों न लेना पड़े।
—- विद्यालय में मिलने वाला पुरस्कार अध्यापक का उचित मार्गदर्शन घर पर पालन-पोषण का ढंग बोलने व पढ़ने की सुविधा माता- पिता की बालक से आकांक्षायें भी अधिगम को प्रभावित करती हैं।
—- विद्यालय में कक्षा के अन्दर हो रही शैतानी बालकों की अनावश्यक तुलना भेदभाव की नीति बालक के सीखने की प्रवृत्ति को प्रभावित करती है और ऐसा निरन्तर होते रहने से बालक अधिगम सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त हो जायेगा।
उपरोक्त समस्यायें पूर्ण नहीं कही जा सकतीं।बदलते परिवेश निरन्तर नये-नये परिवर्तनों घर-परिवार एवं विद्यालय के दृष्टिकोणों में नूतन आयामों के स्पर्श से और भी समस्याओं के रूप हो सकते हैं। बालक से सम्बन्धित समस्यायें कोई भी हों उनके समाधान हेतु विद्यालय एवं माता-पिता के आपसी सहयोग से सफलता पायी जा सकती है। ऐसी स्थिति अधिगम सम्बन्धी समस्याओं को लेकर भी है। जिनका समाधान हम निम्न लिखित उपायों का अपनाकर कर सकते हैं ः-
—- यदि माता-पिता के अशिक्षिति होने मार्गदर्शन के अभाव से बालक समस्याग्रस्त हुआ है तो हम स्वंय उचित मार्गदर्शन व परामर्श एक शिक्षक के रूप में देकर उसको सुलझा सकते हैं।
—- प्रकृति की ओर ध्यान केन्द्रित कर भी उनकी विषय की ओर रुचि पैदा की जा सकती है।
—- बालकों की आयु कम होने से कोई समस्या उत्पन्न हुई हो तो उसे आयु के अनुसार कार्य देकर उपचार किया जा सकता है।वर्णों अक्षरों को समझने व बोलने में सहयोग दिया जा सकता है।
—- स्वास्थय सम्बन्धी श्रवण दृष्टि स्वर तंत्र आदि से उत्पन्न समस्याओं को हम चिकित्सक की सहायता व परामर्श से दूर कर सकते हैं।यदि बालक लिखने की अपेक्षा पढ़कर जल्दी सीखता है तो हम ऐसी शिक्षण पद्धतियां विधियां अपना सकते हैं जिसको सुनकर वह आसानी से सीख सके।जैसे कि सेब सन्तरा ध्वज गेंद आदि का चित्र बनाकर अथवा बोलकर समझाया जा सकता है।
—- अधिगम सम्बन्धी प्राथमिक विद्यालय के बालक की कोई भी समस्या क्यों न हो नियमित रूप से उसमें सुधार हेतु प्रयास करते रहना चाहिए।साथ ही बालक की अभिरुचि का भी ध्यान रखना चाहिए।
—- यदि बालक को नये-नये शब्दों अथवा शब्द भंडार से सम्बन्धित कोई समस्या है तो हमें अधूरे शब्दों को पूर्ण कराकर रेखाचित्रों मुहावरों वाक्य के प्रयोगों से उनका सहयोग कर सकते हैं।
—- विविध जानकारी से जुड़ी समस्याओं को हम रंगों दिनों महीनों फलों फूलों पशु-पक्षियों स्थानों महापुरुषों आदि की जानकारी देकर सचित्र उदाहरणों के माध्यम से प्रेरणा आदि देकर सुलझा सकते हैं। फलों को स्वाद व रंग फूलों को सुगन्ध पशु-पक्षियों को ध्वनि के उच्चारण का स्मरण कराकर सुगमता से समझाया जा सकता है।
अन्त में अधिगम सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए यह भी कहा जा सकता है कि किसी भी उपाय उदाहरण मार्गदर्शन को सफलता तभी प्राप्त हो सकेगी जब वह समस्याग्रस्त बालक की रुचि के अनुकूल तथा मनोरंजक हो।उसमें घर-परिवार और विद्यालय का सकारात्मक व नियमित सहयोग लिया गया हो।