क्षणिकाएं
इस सर्द मौसम में
यादों को सहेजते
सोचा कि …
रिश्तों की फटी चद्दर पर
स्नेह का पैबंद लगा दूँ
शायद एहसास दे दें
ये फिर से गर्माहट का ! !
********************
अनुभव-परिपक्वता,
अब नहीं टिकाऊ !
है हाशिए पर भाषा,
कापी – पेस्ट ही,
अब हैं बिकाऊ ! !
********************
बिक रहे हैं रिश्ते
अब तो …
थोक में,
व्यापार है !
कहलाती थी कल जो तिजारत…
उसी का नाम अब…
प्यार है ! !
********************
न पा सकूं,
क्षितिज अपना …
हैं बंदिशें ज़माने की !
क्यों ठाने है,
फिर किस्मत…
खुद को आजमाने की !
********************
है लौट आया फिर से,
बीता वक़्त यारो !
वो पहले भी थे अंजान,
अब फिर से अजनबी हैं !!
अंजु गुप्ता