दोहा
इस जीवन का प्राण से, है जैसे संबंध।
सच्चाई से शांति का, वैसे ही अनुबंध।।
अंतस में जिस भाव के, बीजे गये विचार।
देगी ख़ेती कर्म की, वैसी पैदावार।।
बीज रहे हम आज जो, कुंठाओं की फस्ल।
काटेंगी हर हाल में, आने वाली नस्ल।।
मिलने का मौका मिला, जिससे जितनी बार।
अलग अलग आनन मिले,अलग अलग किरदार।।
रूढिवाद की साँकलें, बँधी सोच के पाँव।
मन की चाहत को मिले, कैसे मन का गाँव।।
सारे बंधन स्वार्थ के, झूठे नाते तोड़।
पंछी जाएगा चला, तन का पिंजरा छोड़।।
मिथ्या ने निज पक्ष में, इतने दिये कुतर्क।
झूठे साबित हो गये, सच्चाई के तर्क।।
विपदाओं से लोग जो, लड़ते हैं अविराम।
वे ही जीते हैं सदा, जीवन का संग्राम।।
बंसल तू निज कर्म कर, सच्चाई के साथ।
कर्तव्यों का फल सदा, होता विधिना हाथ।।
— सतीश बंसल