व्यंग्य : आदमी की देह
बाहर से देखने पर तो वह आदमी ही दिखाई पड़ता है। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत ही नज़र आती है। उसकी देह तो प्रकृति ने आदमी की ही बनाई है , पर उसकी देह में ही संदेह है। निस्संदेह संदेह है। कुछ जीवों की प्रजातियाँ पशु -पक्षी की देह में भी मानव हैं। उसी प्रकार यहाँ सभी मानव मानव नहीं हैं।अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि इस तथ्य की पहचान कैसे की गई है?
जहाँ तक मैंने समझा सोचा है , यह कोरोना नामक महामारी इस चराचर जगत के लिए एक व्यापक संदेश लेकर आई है।वह प्रत्यक्ष रूप में चर्म चक्षुओं द्वारा दृश्य न भी हो।अन्य अनेक न दिखाई देने वाली चीजों की तरह वह भी दिखाई नहीं देती। लक्षणों के आधार पर उसकी उपस्थिति का विश्वसनीय अनुमान लगा लिया जाता है। जैसे पवन भी दृश्य नहीं है। लेकिन उसका अस्तित्व भी ऐसा है कि उसके बिना मनुष्य तो क्या कोई भी जीवधारी एक निश्चित अवधि के बाद जीवित नहीं रह सकता।पवन को दिखाई नहीं देने के बावजूद सारा संसार उसके अस्तित्व को प्रणाम करता है। पवन की ही तरह ईश्वर ,परमात्मा ,गॉड भी दिखाई नहीं देता तो लक्षणों के आधार पर मानव अथवा अन्य जीवों में उसकी परिकल्पना करके उसके अस्तित्व को स्वीकार किया जाता है। इसी प्रकार से इस विराट ब्रह्मांड में अनेक वस्तुएँ अस्तित्व में हैं।कृपा , आशीष ,वरदान , शाप ये प्रत्यक्षतः दिखाई नहीं देते, किन्तु यथासमय अपना कार्य करते हैं।
चिकित्सकों , पुलिस प्रशासन आदि पर ईंट ,पत्थर बरसाने वालों ,थूकने वालों , पॉलीथिन की थैलियों में मूत्र भरकर फेंकने वालों , अपने ही शुभचिंतकों को मारने -पीटने वालों को मानव -देह मिलने पर भी वे मानव तो हैं ही नहीं।वे हिंसक पशु , राक्षस , दो मुँहे सर्प , बिच्छु, नरभक्षी आदि कुछ भी हो सकते हैं , किन्तु उन्हें मानव कहलाने का अधिकार तो दिया ही नहीं जा सकता। अब यदि देश के नेता अपने वोटों की तिजोरी भरने की ख़ातिर अपने सिर पर कालीन बिछाकर उन्हें बिठाएँ तो कोई क्या कर सकता है। क्योंकि मानव की देह में वे सभी मानव नहीं हैं। इसलिए उनका मौन धारण करना, उनकी लल्लो- चप्पो करना , तेल मालिश करना ये सब यही सिद्ध करते हैं कि ये भी किसी स्तर पर , उनके किसी पूर्व जन्म के रिश्तेदार ही होंगे। अरे भई ! जब उन्हें मनुष्य का चोला मिला है ,तो उन्हें अपनी ‘अतिमानवता ‘ तो उन्हें दिखानी ही होगी। इसलिए ऐसे मानव देहधारी अमानवों को सहलाना , फुसलाना , बहुत जरूरी हो जाता है। और वे ऐसा कर रहे हैं। उनकी छत्रछाया में पल रहे हैं। फल -फूल रहे हैं।
उन्हें मानव कैसे माना जा सकता है जो दूसरों के हकों पर डाका डालकर अपने घरों में आटा , दाल , सब्जी , नमक दैनिक प्रयोग की चीजों को एकत्र करके दुकानों पर बेच रहे हैं और बदले में शैम्पू, क्रीम ,पाउडर ,लिपस्टिक खरीद रहे हैं। यह महामारी ऐसे राक्षसों को पहचान कराने के लिए आई है। उन्हें उनके आँगनों में नंगा किया जा रहा है। लेकिन शर्म वह शै है ,जो मानवों के लिए है , पशु या राक्षसों के लिए नहीं। उन्हें आए तो कैसे और क्यों?
कोरोना महामारी मानव, अतिमानव और अमानव की पहचान करने के लिए आई है कि कौन -कौन हैं ऐसे जो मानव देह में मानव नहीं हैं। वे उसी कोरोना के रिश्तेदार , भाई , बन्धु , इष्ट , मित्र कुछ भी हो सकते हैं। वह तो एक निश्चित अवधि के बाद चली ही जाएगी , किन्तु आदमी की देह में कौन सा राक्षस , देवता , अतिमानव छिपा बैठा है , इसकी बहुत अच्छी पहचान कराने आई है। वायरस कोरोना कम है , उससे बड़ा वायरस तो ये मानव देहधारी छद्म मानव है , जिसका नंग नाच कभी इंदौर, कभी दिल्ली , कभी निजामुद्दीन , कभी मुरादाबाद कभी देश के अन्य स्थानों में देखने , सुनने और पढ़ने को मिल रहा है। यह मानव की परीक्षा की घड़ी है , जो यह सिद्ध कर चुकी है कि सबसे घातक वायरस यह मानव देह में छिपा हुआ राक्षस ही है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’