लघुकथा

खुशी का एक दूसरा रूख़

पिछले कई दिनों से अजीब कशमकश अजीब में था मैं। दरअसल यह कशमकश कुछ ही हफ़्तों पहले बड़े भाई के घर; हर तरह की सुख-सुविधाएं होने के बावजूद माँ के खुश न रहने की शिकायत के चलते, माँ को अपने पास कनाडा ले आने के बाद से पैदा होने लगी थी। हालाँकि यहां के उन्मुक्त वातावरण और संस्कारी माँ को देखते हुए ऐसा कुछ सोचना मूर्खता ही थी लेकिन फिर भी पड़ोस के विधुर जेम्स अंकल का घर में आना-जाना, उनके साथ माँ का उन्मुक्त भाव से बोलना और नजदीकियां बढाना मैं स्वीकार नही कर पा रहा था। लिहाजा आज मैंने माँ से इस बारे में खुलकर बात करने का निश्चय कर लिया था और यही सब सोचते हुए जब मैं घर में दाखिल हुआ।

“देखिये कैसा है ये?” दीवार की ओट में खड़ी माँ पारंपरिक पहनावे की जगह जेंट्स-शर्ट नुमा कपड़े पहने जेम्स से पूछ रही थी।

“बहुत सुंदर एक दम विदेशी मेम !” जेम्स मुस्कराने लगा।

“नही जेम्स, ऐसा तो कुछ भी नही !” कहते हुए माँ के चेहरे पर एक लज्जाभरी मुस्कान आ गयी।

“नही सच।” जेम्स एक क्षण रुककर हँसने लगा। “एक बारगी तो मुझे ऐसा लगा कि मानो मेरी नैंसी आ गयी हो।”

उसकी बात से कुछ आक्रोशित हो मैं आगे बढ़ने ही लगा था कि माँ की आवाज ने मेरे कदम रोक दिए।

“नैंसी ! नही नही जेम्स, मैं कभी तुम्हारी नैंसी नही बन सकती। ठीक वैसे ही जेम्स, जैसे तुम कभी मेरे ‘राज’ नही बन सकते।” माँ गंभीर हो गयी थी।

“जस्ट जोकिंग !” जेम्स खुलकर हँसा और फिर मुस्कराने लगा। “डोंट बी सीरियस फ्रेंड! याद नही, हमने एक दूसरे को प्रॉमिस किया है कि जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर जहां लोगों की बेरुखी ने हमें सिर्फ एक सामान बना दिया है, हम निराश नही होंगे बल्कि जीवन का बाकि समय एक दूसरे को खुश रखने की कोशिश करेंगे। बस वही कर रहा था।”

“ओह तो मेरा मजाक बनाया जा रहा था, लेकिन सच तो ये है कि हम भी नैंसी से कम नही।” कहते हुए माँ खिलखिला उठी और उन दोनों की सम्मलित
हँसी से कमरा भी खिलखिलाने लगा।

उनकी और मेरे बढ़ते कदम अनायास ही पीछे हट गए। बड़े भाई की तरह सुख-सुविधाओं को ही ख़ुशी का पर्याय मानने वाला मैं, आज साक्षात ख़ुशी का एक और पक्ष देख रहा था जिसके बारे में कभी मैंने सोचा ही नही था।

विरेंदर ‘वीर’ मेहता

विरेन्दर 'वीर' मेहता

विरेंदर वीर मेहता जन्म स्थान/निवास - दिल्ली सम्प्रति - एक निजी कंपनी में लेखाकार/कनिष्ठ प्रबंधक के तौर पर कार्यरत। लेखन विधा - लघुकथा, कहानी, आलेख, समीक्षा, गीत-नवगीत। प्रकाशित संग्रह - निजि तौर पर अभी कोई नहीं, लेकिन ‘बूँद बूँद सागर’ 2016, ‘अपने अपने क्षितिज’ 2017, ‘लघुकथा अनवरत सत्र 2’ 2017, ‘सपने बुनते हुये’ 2017, ‘भाषा सहोदरी लघुकथा’ 2017, ‘स्त्री–पुरुषों की संबंधों की लघुकथाएं’ 2018, ‘नई सदी की धमक’ 2018 ‘लघुकथा मंजूषा’ 2019 ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशस्त्र’ 2019 जैसे 22 से अधिक संकलनों में भागीदारी एवँ किरदी जवानी भाग 1 (पंजाबी), मिनी अंक 111 (पंजाबी), गुसैयाँ मई 2016 (पंजाबी), आदि गुरुकुल मई 2016, साहित्य कलश अक्टूबर–दिसंबर 2016, साहित्य अमृत जनवरी 2017, कहानी प्रसंग’ 2018 (अंजुमन प्रकाशन), अविराम साहित्यिकी, लघुकथा कलश, अमर उजाला-पत्रिका ‘रूपायन’, दृष्टि, विश्वागाथा, शुभ तारिका, आधुनिक साहित्य, ‘सत्य की मशाल’ जैसी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। सह संपादन : भाषा सहोदरी लघुकथा 2017 (भाषा सहोदरी), लघुकथा मंजूषा 3 2019 (वर्जिन साहित्यपीठ) एवँ लघुकथा कलश में सम्पादन सह्योग। साहित्य क्षेत्र में पुरस्कार / मान :- पहचान समूह द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा’ प्रतियोगिता (२०१६) में प्रथम स्थान। हरियाणा प्रादेशिक लघुकथ मंच द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता (२०१७) में ‘लघुकथा स्वर्ण सम्मान’। मातृभारती डॉट कॉम द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता (२०१८) ‘जेम्स ऑफ इंडिया’ में प्रथम विजेता। प्रणेता साहित्य संस्थान एवं के बी एस प्रकाशन द्वारा आयोजित “श्रीमति एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान” 2018 (कहानी प्रतियोगिता) और 2019 (लघुकथा प्रतियोगिता) में प्रथम विजेता।