गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैं हूं मुजरिम तो मुझे हक से सजाएँ दे दो
वर्ना बाहों मे अपनी मुझको पनाहें दे दो।

बाद मरने के दुआओं से ना जिंदा होंगे
अभी जिंदा हूं तो दो-चार दुआएं दे दो।

मैने कब तुमसे आसमा या जमीं मांगी है
अपना समझो तो मुझे अपनी वफाएं दे दो।

जी में आता है जी भरके तेरे साथ जियूं
थाम लो हांथ मुझे दिल से सदाएं दे दो।

दिदार ए यार के खातिर निगाहें तपती हैं
तुम आओ सामने रंगीन फिजाएं दे दो।

मुझे उनके सितम नजर न आए जानिब
ऐ खुदा मुझको वो मासूम निगाहें दे दो।

— पावनी जानिब सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर