कार्तिक कुम्मर मेला अब कुछेक स्थानों की ही शोभा रही !
वैसे कार्तिक माह भगवान महेश्वर शिव के ज्येष्ठ पुत्र ‘कार्तिक’ के इन अवधि में जन्म लेने के कारण पड़ा है। वो जन्म अवधि कोई कार्तिक पूर्णिमा को मानते हैं अथवा बांग्ला संवत के अनुसार ‘संक्रांति’ को, जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष ’17’ तारीख को पड़ता है, जो अंग्रेजी माह के रूप में नवम्बर ही रहता है, जिस तिथि को कार्तिक कुम्मर यानी कुँवारे कार्तिक देव की पूजा-अर्चना और मेला लगती है।
ख़ैर, जो हो, परंतु कार्तिक पूर्णिमा में गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु महेश्वर की अर्चना-पूजा की जाती है और इसके एतदर्थ ‘माँ गंगा’ की नदी में स्नान कर आस्था निवेदित करते हैं, श्रद्धा से त्रिदेव सत्ता में अपने को लीन कर देते हैं। गंगा के अंतेवासी क्षेत्र मनिहारी में रहकर अपने को चिरनीत और गर्वान्वित मानते रहे हैं। कटिहार, बिहार के मनिहारी अंचलान्तर्गत नवाबगंज में कार्तिकेयदेवकी न सिर्फ पूजा-अर्चना, अपितु इस शुभ अवसर पर मेले का आयोजन भी होता है, जिसे मिल-बैठ आपसी सहयोग से करते हैं।