लघुकथा

जानवर

मेरी नातिन पीयू ,बड़ी शैतान है ।जिस काम को करने से उसे मना करो ,वह वही करती है। अभी मात्र 3 साल की है, मगर जिद बढ़ो जैसी। उसको देखने का बड़ा मन हो रहा था इसलिए मैं अपनी बेटी प्रिया के यहां चली आई। वहां पीयू से मिलकर मन को बड़ा सुकून मिला मगर एक चीज देखकर मुझे प्रिया पर बहुत गुस्सा आया । प्रिया ,रोज शाम को रोटी में जेम लगाकर रोल बनाती और पीयू के हाथ में देती ,फिर उसे लेकर सामने वाले पार्क में चली जाती ।आज मैं भी साथ में गई थी वहां। मैंने देखा कि पीयू जमीन पर बैठ जाती है और उसके साथ एक- दो कुत्ता बैठ जाता है । पीयू रोटी का रोल कभी खुद खाती है, कभी कुत्तों को खिलाती है ।कभी कुत्तों को  पीयू पप्पी देती है  तो कभी वह कुत्ता  पीयू को चाटता है। मैंने इसके लिए प्रिया को बहुत डांटा। कुत्ता काट लेगा, इंफेक्शन हो जाएगा ।मगर प्रिया ने हंसकर बात को टाल दिया । जानवर है मां, प्यार का भूखा है, कुछ नहीं करेगा ।इसी इसके बहाने पियू रोटी  रोटी खा लेती है, वरना वह खाती कहां है। अगले दिन भी प्रिया का वही रूटीन ।खुद गप्पे लड़ा रही है और उसकी बेटी कुत्तों के साथ रोटी खा रही है और खेल रही है ।

मुझे भी आए हुए एक हफ्ता हो गया है। मैं भी अब इस पीयू और कुत्तों की मित्रता की आदी हो गई  हूं। इधर पीयू को कुछ दिनों से मैं ही पार्क ले जा रही हूं ।आज भी मैं ही लेकर आई हूं ।मगर यह क्या? एकाएक वहां प्रिया आई और दौड़ती हुई झपट कर उसने पीयू को गोद में उठा लिया और मुझ पर बरस पड़ी “आप क्या कर रही हैं यहां ?आपका ध्यान कहां है? आपने देखा पीयू किसके साथ खेल रही है ? वह जानवर है ,जानवर ।पिछले महीने वैसे ही शर्मा जी की 4 साल की बेटी खेल रही थी। आज तक उसका कोई अता- पता नहीं चला।” कहते-कहते प्रिया का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था,शब्द भय  सेे कांप रहे थे और आंखें लाल होकर छलकने ही वाली  थी ।मैं उस स्थान को देखने लगी, जहां पीयू खेल रही थी ।वहां एक आदमी बैठा था।

— डॉ मीरा सिन्हा

डॉ. मीरा सिन्हा

नालंदा, बिहार