मुक्तक/दोहा

अब क्या होगा…

घर आने की जद्दोजहद, भूखे बेबस व लाचार,

जान की परवाह नहीं, पहुँचे कैसे भी घर द्वार।
सैकड़ों मीलों जाकर, रोजी रोटी की मशक्कत,
उम्मीदों पर फिरा पानी,अब कैसे चले परिवार।।
बेटा गया कमाने, बापू ने देखे थे कितने सपने,
माँ व पत्नी के ख़्वाब न हो सकेंगे अब अपने।
ख़ूब परिश्रम से परिवार का हो बेहतर जीवन,
बेटी की पढ़ाई और शादी के कैसे बनेंगे गहने।।
बेटे को ख़ूब पढ़ाएंगे, बन जाए बड़ा अधिकारी,
परिवार की ख़ूब  उन्नति हो, कटे हमारी दुश्वारी।
परिवार की ख़ुशियों के लिए ही अकेले परदेश में,
न जाने कौन से गुनाह, हमारे आई यह महामारी।।
बापू की कैसे होगी दवा, खेतों में न पड़ेगी खाद,
अचानक आई बीमारी ने लाखों को किया बरबाद।
घर जाने के लिए हजारों किलोमीटर चल रहे पैदल,
हो चुके बेरोजगार, अब न जाने कब होंगे आबाद।।
बेहतर जीवन जीने के लिए, कमाने गए रहे परदेश,
बीमारी के चलते फैक्टरी चलने के बंद हुए आदेश।
पैसे पैसे को हो रहे मोहताज़, भविष्य में क्या होगा,
महामारी से बेहाल हुआ, आज हमारा भारत देश।।
— लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

सहायक अध्यापक मोहल्ला-बैरिहवा, पोस्ट-गाँधी नगर, जिला-बस्ती, 272001-उत्तर प्रदेश मोबाइल नं-7355309428