कहानी

क्षितिजा और अदिति

‘तो आपने शादी नहीं की, मतलब गैर शादीशुदा हो ?’ मेरे सवाल पे वो तनिक करीब आते हुए बोली ‘हाँ कुणाल मैने कभी किसी से शादी नहीं की, मतलब मै कभी किसी की पत्नी नहीं बनी।’

उनकी बात सुनकर न जाने क्यों मैं खामोश हो गया था। अपनी बात कह कर खामोश तो वो भी हो गई थी। हमारे दरम्यां की ये ख़ामोशी इतनी गहरी थी कि हमारी सांसे हमें ही किसी तेज आंधी की मानिंद सुनाई दे रही थी।

मैने गौर से उस यक्ता औरत के चेहरे को देखा तो मुझे वहां उदासी का मंज़र नज़र आया। एक ऐसी गहरी उदासी मानों जो समुन्दर तक को लील जाये। वो खूबसूरत औरत जिसका चेहरा अब से कुछ देर पहले बिस्तर पे किसी खिलते गुलाब सा नज़र आ रहा था। अब उस चेहरे को यूँ उदास देखकर मेरे मन में एक कसक से उठी थी। इस कसक ने मुझे एक पल में  ही ये एहसास करा दिया कि इस वक़्त मेरे सामने खड़ी जिस औरत के चेहरे पर उदासी नाच रही है,  मैं उस औरत से मुहब्बत करने लगा हूँ। बेपनाह मुहब्बत।

‘मेरी पत्नी बनोगी।’ कंधो से पकड़ के अपने सीने से लगाते हुए मैंने उनसे पूछा था।

‘नो..।’ मेरी बात का ये बेहद छोटा सा उत्तर देकर उन्होंने मेरे सीने के बालो में अपनी नाक रगड़ी थी।

‘क्यों ?’  उनके छोटे से जवाब के बदले में पूछा गया मेरा सवाल भले ही उतना ही छोटा था लेकिन उनके चेहरे को ऊपर उठाकर उनकी गुलाबी रंगत वाले होठो पे लिया गया मेरा बोसा बेहद ही लम्बा था।

बोसे के बाद मैने अपने सवाल के जवाब में उनकी आँखों में देखा तो वो आँखे चुराकर बेड पर पड़ी अपनी साडी उठाकर बांधने लगी। मै वहीं बेड के एक कोने पे बैठकर उन्हें साड़ी बांधते देखता रहा। अभी भी उदासी उनके चेहरे पर डेरा जमाये हुए थी।

‘आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ?’ मैने फिर पूछा था।

‘किस बात का ?’ साड़ी बांधकर उसका पल्लू अपने कंधे पे डालते हुए उन्होंने पूछा।

‘क्यों नहीं बनना चाहती मेरी पत्नी ?’

‘अरे कुणाल इस उम्र में तो औरतें अपने बच्चो की शादी की फ़िक्र करने लगती हैं और तुम मुझसे मेरी शादी की फ़िक्र करने को कह रहे हो।’  मेरे सवाल का जवाब देकर वो हंस पड़ी थी। उनकी ये हँसी खिलते कमल की पंखुड़ियों से खिलती हुई थी।

इस हँसी ने उनके चेहरे की उदासी को भगा दिया था और मुझे उनके हँसते चेहरे ने वो ख़ुशी बक्शी जिसने मुझे इस बात के लिए सोगवार नहीं होने दिया कि उन्होंने मेरे शादी वाले प्रस्ताव को मज़ाक में उड़ा दिया है।

क्षितिजा के जाने के बाद उस शाम मैं यूँ बहुत देर तक दरीचे पर बेमकसद खड़ा रहा। यहाँ तक कि बैंगनी रंग की शाम काली रात में ढल चुकी थी। हालांकि सोसाइटी के फ्लेट्स में रौशनी थी लेकिन कुछ तकनिकी खराबी के कारण कैम्पस की स्ट्रीट लाइट्स बंद थी। दो मैकेनिक उन्हें सही करने का प्रयास कर रहे थे। नीचे कैम्पस में खेलने वाले बच्चे अपने घरों के जानिब जाने लगे थे और चोरी-छुपे प्यार करने वाले जोड़े अँधेरे का फायदा उठाकर किसी पेड़ की ओट या फिर बिल्डिंग्स के पीछे की दीवारों से सटकर एक दूसरे के पहलू में समाकर साँसों का आदान-प्रदान कर रहे थे।

बहुत देर तक यूँ ही एक जगह खड़े रहने से मेरी टांगे दुखने लगी थी और मैं पलट के जाकर बिस्तर पे थोड़ा आराम करने की सोच ही रहा था कि अचानक नीचे सोसायटी कैम्पस में उजाला फैल गया। दोनों मैकेनिकस की सफल कोशिश से स्ट्रीट लाइट्स ठीक होकर चमकने लगे थी। घरों की और जा रहे बच्चे वापस शोर करते हुए कैम्पस में आने लगे। रात के नीम अंधेरे में एक दूसरे की आँखों को पढ़ने वाले जोड़े एक दूसरे से अलग होकर अपने आस-पास यूँ देखने लगे क़ि कहीं उन्हें प्रेम प्रदर्शित करते किसी ने देख न लिया हो और कल चढ़ते सूरज के साथ कहीं उनकी प्रेमकहानी तिल का ताड़ बनाकर सुनी – सुनाई न जाने लगे।

लाइट्स आ जाने से ये प्रेमी जोड़ों की हकबकाहट देखकर मेरे होठों पर मुस्कान पसर गई और मैं अपनी टांगों का दर्द भूलकर वापस नीचे खेल रहे बच्चों और प्रेमी युगुलों को देखने लगा। ये प्रेमी युगल अब एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बनाकर टहलते हुए यूँ बात कर रहे थे जिससे इन्हें देखकर अब कोई उन्हें प्रेमी युगल न समझकर केवल कैम्पस में साथ रहने वाले हमउम्री वाली दोस्ती समझे।

एक प्रेमी युगल जो उम्र में अभी टीनएज था वो टहलते हुए कैम्पस के बाहर की और जाने लगा और मेरी निगाहें भी बेमकसद ही उनके पीछे चल दी। वे दोनों कैम्पस से बाहर निकल के सड़क के एक छोर की ओर जाकर आँखों से ओझल हो गए। उनके ओझल होते ही मेरी निगाहें वापस लौट ही रही थी कि उन्होंने अदिति को कैम्पस में घुसते देख लिया।

अदिति को अभी दो सप्ताह से ज्यादा नहीं हुआ था इस कैम्पस में रहते। एक दिन जब मैं पास के एक रेस्त्रां में चाय पी रहा था तो वो भी आ गई थी। हमने एक दूसरे को बिल्डिंग कैम्पस में देखा था इसलिए देखकर हमारे होठो से मुस्कान स्वत: ही निकल गई और अदिति मेरे सामने की खाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली थी ‘शायद आप भी अरिहंत कैम्पस में रहते हैं?’

‘हाँ।’ कहकर मैने इशारे से वेटर को आने को कहा और फिर उससे मुखातिब होते हुए बोला ‘आप चाय के साथ क्या लेना पसंद करेगी ?’

‘बटर टोस्ट।’ उसने बेतकल्लुफ होते हुए कहा और फिर तनिक खामोश होते हुए बोले ‘कहीं मैने आपकी प्राइवेसी तो भंग नहीं कर दी ?’

‘नहीं नहीं, बिलकुल नहीं। मुझे आपके साथ चाय पीकर अच्छा लगेगा मोहतरमा।’

‘अदिति नाम है मेरा।’ मेरी बात पे जब उसने मुझे अपना नाम बताया तो मैने भी उसे अपना नाम बता दिया था।

उसके बाद हम एक दूसरे से सिर्फ रस्मी तौर पे मिले थे और हमारे दरम्यान हाय – हैल्लो से ज्यादा कुछ नहीं हुआ था।

कैम्पस के दरम्या आते ही अदिति ने सर उठाकर मेरे फ्लैट की और देखा तो मुझे देखकर मुस्करा दी। मैने हाथ हिलाकर उसकी इस मुस्कान का उत्तर दिया। बदले में उसने हाथ के इशारे से ही पूछा ‘कि मैं कैसा हूँ ?’

कोई इशारा करके मैं उसकी पूछी बात का माकूल जवाब दे पाता उससे पहले ही वापस जल रही स्ट्रीट लाइट्स बुझ गई।

लाइट्स के सही होने पर बच्चों ने जैसा शोर मचाया था वैसा ही शोर लाईट्स के जाने पर भी मचाया।

मैं बहुत देर तक लाइट्स आने का इंतज़ार करता रहा और फिर बिस्तर पे आकर लेट गया। कुछ देर बाद मैने देखा  कि खिड़की से बाहर रौशनी दिखाई पड़ रही है, मतलब मैक्निक्स ने स्ट्रीट लाईट फिर सही कर दी। अब अदिति अपने सवाल का जवाब सुनने के लिए वहां नहीं खड़ी होगी ये सोचकर मैं उठकर दरीचे पर नहीं गया। अदिति क्या करती होगी मतलब कोई जॉब या फिर कुछ और मेरे दिमाग में अचानक इस ख्याल ने दस्तक दी। उसकी उम्र अठारह – उन्नीस से ज्यादा तो नहीं लगती तो मुमकिन है वो पढ़ाई करती होगी। शायद अदिति अभी भी नीचे हो तो मैं उससे मिलकर उसके बारे में कुछ जान संकू ये सोचकर में उठकर खिड़की पे जाना ही चाहता ही चाहता था कि फोन की घंटी बज उठी।

बिस्तर के पास तिपाई पे रखे फोन का रिसीवर जब मैने उठाया तो दूसरी और क्षितिजा थी। ‘रसस्वादन’ रेस्तराँ में आकर उन्होंने मुझे साथ में डिनर करने के लिए कहा था, जिसे मैने मान लिया था। क्योंकर न मानता। अभी कुछ देर पहले उस खूबसूरत औरत के साथ मैने दोपहर बिताई थी और इस दोपहर ने मुझे एहसास दिलाया था कि मैं क्षितिजा की मुहब्बत में गिरफ्तार हो चुका हूँ।

वॉश बेसिन में मुहं पर पानी की छींटे मारकर मैने जींस और टी शर्ट पहनी। बाहर हलकी गुलाबी सर्दी का एहसास करके मै हाफ स्वेटर पहन ही रहा था कि डोर बेल चहक उठी।

स्वेटर को गले में डालते हुए मैने दरवाजा खोल दिया।

सामने अदिति थी, होठों पे स्निग्ध मुस्कान लिए।

अदिति मेरे डोर की बेल बजाएगी मुझे ये हरगिज़ उम्मीद नहीं रही थी, इसलिए उसे यूँ दरवाजे पे देखकर मैं उससे क्या कहूं ये समझ ही नहीं आया और मेरे होठो ने ख़ामोशी ओढ़ ली।

आज खाना बनाने के मूड नहीं हुआ, डिनर के लिए बाहर जा रही थी तो सोचा आप को भी बुला लूँ।’ मुझे खामोश देखकर अदिति ने वहीँ दरवाज़े पे खड़े हुए ही पूछा था।

अदिति सी कमसिन एवं अनिन्द सुंदरी लड़की डिनर के लिए बुला रही है ये सोचकर मेरे होठो से ‘हाँ’ निकलने ही वाला था की क्षितिजा के डिनर इन्विटेशन ने मेरे होठो पे चुप्पी लगा दी।

‘शायद आप कहीं जा रहे थे ?’ मुझे चुप देख अदिति ने पूछा तो मैंने हड़बड़ाते हुए कहा ‘अरे आप अंदर तो आइये।’

‘नहीं – नहीं फिर कभी आराम से अभी मुझे भूख सता रही है।’ कहते अदिति मुड़कर जाने लगी तो मैने उसे पीछे से पुकारते हुए कहा- ‘सोरी अदिति मैने किसी को टाईम दे रखा है।’

‘इट्स ओके।’ अदिति जाते हुए बोली थी।

उसके जाते ही भीतर आया, स्वेटर पहनने से उलझे बालो को सुलझाया और डोर लॉक करके ‘रसस्वादन’ रेस्त्रां के लिए चल पड़ा।

हलकी ठण्ड की वजह से अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी पीठ एवं उन्नत वक्ष को लपेटे हुए क्षितिजा एक टेबल पर मेरा इंतज़ार कर रही थी।

‘आपको साल या स्वेटर ले लेना चाहिए था।’ मैने उनके सामने बैठते हुए कहा तो उन्होंने अपने पल्लू को कंधे पे डालते हुए कहा ‘कुणाल हम फीमेल्स को ड्रेसिंग में अमूमन स्वेटर वगेरा पसंद नहीं।’

‘इसमें पसंद नापसंद जैसा कुछ नहीं, सर्दी से बचने के लिए ये ड्रेसिंग लाज़िमी है।’ मैं ये कहना ही चाहता था पर साड़ी के पल्लू के हटने से दूधिया रौशनी में नुमाया हुई उनकी मरमरी बाँहों को देखने की ललक ने मुझे ये कहने न दिया।

‘मैने खाना आर्डर कर दिया है।’ क्षितिजा ने आर्डर की गई डिश बताने के बाद मुझसे पूछा क्या मुझे कुछ ओर चाहिए।

नहीं।’ मैने छोटा सा उत्तर देकर रेस्त्रां में इधर – उधर नज़र फिराई तो मेरी नज़र एक जगह जाकर ठहर गई। नूडल्स में बिज़ी वहां अदिति बैठी थी।

‘क्या तुम उस लड़की को जानते हो ?’ अदिति पे ठहरी मेरी निगाहों को ताड़ते हुए क्षितिजा ने मुझसे पूछ लिया था।

‘हाँ वो मेरे कैम्पस में ही रहती है।’ मैने क्षितिजा से ये सोच कर झूठ बोलना ठीक नहीं समझा कि अगर अदिति ने मुझे देखकर ‘हाय – हेलो’ कर दिया तो मेरा झूठ पकड़ा जायेगा।

ख़ैर क्षितिजा अदिति के बाबत कोई और सवाल कर पाती उससे पहले ही मैने उनसे कहा ‘मैं जानता हूँ डिनर तो एक बहाना भर है वास्तव में आपने मुझे मेरे दोपहर वाले सवाल का जवाब देने के लिए बुलाया है।’

मेरी कही बात सुनके क्षितिजा चुप होकर टेबल पर रखे टिश्यू पेपर को उठाकर उसे अपनी उँगलियों से लपेटने लगी। उसे ऐसा करते हुए देख मैने सोचा शायद वो दोपहर मेरे पूछे गए सवाल का जवाब देने के लिए माकूल लफ़्ज़ों की तलाश कर रही है।

कुछ वक़्त मै क्षितिजा के जवाब का इंतज़ार करता रहा। और जब उसकी ख़ामोशी लम्बी होकर मुझे अखरने लगी तो मै उनकी मृणाल ऊँगली से टिशू पेपर को हटाते हुआ कहा ‘अगर आप चाहें तो मैं आपको वापस ‘मैम’ कहने लगता हूँ जैसे अपनी मुलाकात के शुरआती दिनों में कहा करता था।’

‘कुणाल अगले दस साल में क्या होगा जानते हो?’  क्षितिजा ने एक नजर अदिति की ओर देखा और फिर मुझसे पूछा था। अदिति अभी भी अपने नूडल्स में बिजी थी। या तो रेस्तरां में उसे मेरी आमद की कोई खबर नहीं थी या फिर मुझे किसी हसीन औरत के साथ देखकर उसने मुझे डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा था।

‘क्या होगा मैम?’ होंठों पे हास्य लाकर मैने क्षितिजा की डोलती आँखों में देखा।

‘तुम्हे मेरी इन आँखों में जिनमे अभी तुम देखकर सरशार हो रहे हो उन्हें देखने में कोई रस न मिलेगा’ खितिजा अपनी ऊँगली पर वापस टिश्यू पेपर लपटते हुए बोली ‘मेरी देह, मेरा सौंदर्य ढल रहा होगा मेरे आधे बाल सफ़ेद हो चुके होंगे क्या उस समय तुम्हारा कोई दोस्त, कोई जानने वाला जो मेरे बारे में तुम से पूछेगा तो क्या तुम्हे मुझे अपनी पत्नी बताते हुए कैसा लगेगा। जानते हो कुणाल मैं इस वक्त चालीस साल की हो चुकी हूँ और तुम बाईस साल के। तुम्हें तो उस जैसी किसी लड़की को प्रपोज करना चाहिए।’

क्षितिजा की कही आखिरी बात ‘उस जैसी किसी लड़की’ के बाबत पूछ पाता उससे पहले ही वेटर खाना लाकर सर्व कर गया।

‘क्षितिजा – सौंदर्य देखने वाली आँखों में होता है। मैं जानता हूँ मैं हमेशा तुम्हे इसी नजर से देखूंगा। इसलिए आज दस साल बाद तो क्या जीवन के अंतिम पड़ाव तक तुम मुझे इतनी ही सुन्दर दिखोगी।’

क्षितिजा ने मेरी बात सुनी। और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए खाना खाती रही। उन्हें खामोश देख मैने उनसे पूछा ‘वैसे आपने किस लड़की से मुझे प्रपोज करने की सलाह दी अभी अभी।’

‘वो लड़की।’ क्षितिजा ने अदिति की तरफ हल्का सा इशारा करके कहा। मैने देखा अदिति अब नूडल से फारिग होकर आईस्क्रीम खा रही थी। इस हलकी ठंडी में आइस्क्रीम खाने का मजा उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा था। मैने अंदाजा लगाया अदिति को आईस्क्रीम खाना बहुत पसंद है। मेरी नजर अदिति पर थी तभी उसकी आँख मुझसे टकराई। मुझे देखते ही वो हलके से मुस्कराई। उसको एक पल मुसरकराकर देखकर मैने अपनी नजर वापस क्षितिजा पर लगा दी।

‘सुन्दर है न।’ क्षितिजा ने पूछा तो मैने कहा – ‘सुन्दर है पर तुम जितनी नहीं।’

‘पर मुझ से ज्यादा जवान है’ क्षितिजा हंसकर बोली ‘उसकी जवानी उठती हुई है और मेरी ढलती हुई।’

‘क्षितिजा तुम्हारे बारे में कोई मजाक करे मुझे पसंद नहीं चाहें वो फिर तुम ही क्यों न हो।’

मेरी बात सुनके क्षितिजा ने एक पल मुझे गंभीरता से देखा और फिर अपने हाथों को टिश्यू पेपर से साफ़ करते हुए बोली ‘ खाना जल्द से फिनिश करो मैं काफी मंगवाती हूँ हमें अभी निकलना भी होगा।’

क्षितिजा वेटर को बुलाकर काफी का आर्डर कर रही थी तभी अदिति हमारे पास आयी। क्षितिजा को स्माईल देकर वो मुझे मुखातिब हुई ‘कुणाल आज न जाने क्यों ऑटो और टैक्सी का कुछ प्रॉब्लम है अगर आपका कहीं और जाने का कोई प्रोग्राम न हो तो क्या मुझे अपने कैम्पस तक लिफ्ट दे देंगे?’

अदिति की बात का मैं क्या जवाब दूँ, ये अभी सोच ही रहा था तभी क्षितिजा बोल उठी ‘हाँ हाँ क्यों नहीं अगर तुम दोनों एक – दूसरे को जानते हो तो जरूर छोड़ देगा कुणाल तुम्हे। बैठो बस काफी पीकर हम उठने ही वाले थे। तुम काफी लेना चाहोगी या.. ?’

‘जी मैं चाय लेना पसंद करुँगी।’ अदिति बैठते हुए बोली।

वेटर कुछ देर में दो काफी और एक चाय ले आया। आर्डर आने तक और फिर चाय-काफी पीने तक क्षितिजा और अदिति एक दूसरे को अपना परिचय देती रहीं। क्षितिजा के बारे में तो मैं बहुत कुछ जानता था पर अदिति के बारे में मैंने आज ही जाना था।

अदिति एक बड़े घर की लड़की थी। यहाँ अरिहंत कैम्पस में एक फ्लैट लेकर वो अकेले इसलिए रहती थी कि उसे अपनी पेंटिंग बनाने में कोई व्यवधान न हो। यहाँ तक उसने इसी वजह से अपने फ्लैट में कोई नौकर-नौकरानी भी नहीं आने देती। अपने सभी काम वो खुद करती थी।

क्षितिजा ने मुझे जब अदिति को साथ ले जाने को कहा तो मैं मना न कर सका। अदिति के सामने मैं कोई हील-हुज्जत करता ये भी लाजिमी नहीं था। क्षितिजा अपनी कार ड्राइव करके चली गई और मैं बाईक पे पीछे अदिति को बिठाकर अपने कैम्पस की ओर चल दिया।

शुरू मैं अदिति ने कोशिश की, वो बाईक पर मेरा सहारा लिए बिना बैठी रही किन्तु सर्द मौसम की लहर ने उसे मेरे पीठ पर चिपकने के साथ मेरे काँधे पर अपना  मखमली हाथ रखने पर मजबूर कर दिया। अदिति ने भी क्षितिजा की मानिंद कोई साल या स्वेटर नहीं डाला था। सर्द मौसम में खुद को ऐसे कपड़ों से बचाने का हुनर लड़कियां कैसे सीखती हैं, ये सवाल मै किसी  दिन क्षितिजा या अदिति से जरूर पूछने वाला था। ये सवाल शायद मै अभी अदिति से पूछता लेकिन मेरी पीठ पर उसके चिपके हुए गुदाज वक्षों की हरारत से खुद को सँभालने में मेरी पूरी ताकत लग रही थी।

उस रात अदिति मुझे थेंक्स कहकर अपने फ्लैट में चली गई। अपने फलैट में आकर मैने सोने की कोशिश की तो अदिति के ख्यालो ने आ घेरा। जब बहुत देर तक मैं खुद को अदिति के ख्यालों से आजाद न कर सका तो क्षितिजा के बारे में सोचना लगा। अब मेरे दिलो दिमाग में क्षितिजा और अदिति गड्ड – मड्ड थी। नींद आने तक वो दोनों यूँ ही आपस में गड्ड – मड्ड रही थी।

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आने वाले दिनों में अदिति न केवल मेरे करीब आयी बल्कि क्षितिजा भी उसके करीब आयी थी।

अदिति और क्षितिजा दोनों ने एक साथ मेरे साथ पार्टियां शेयर की। साथ में लंच डिनर किये। कभी – कभी शॉपिंग भी। हालाकिं क्षितिजा अदिति से दो गुनी ज्यादा उम्र की थी पर दोनों का आपस में बिहेव  सहेलियों जैसा हो गया था। एक दिन एक पार्टी में मैने क्षितिजा को अपने साथ डांस करने को कहा तो पीरियड्स आने की वजह से उन्होने मना कर दिया। मैं डांस करना चाहता हूँ, ये जानकर अदिति ने मेरा हाथ पकड़ के थिरकने लगी थी। संगीत की मादक धुन के असर ने हमारे जिस्मो को करीब ला दिया था। अदिति की कमर पर मेरे हाथ का कसाव और मेरे चेहरे पर अदिति की गर्म साँसों की चुभन टेबल पर ड्रिंक सिप कर रही क्षितिजा ने भी महसूस की थी। उस दिन से अदिति जब- तब मेरे करीब आ जाती।

अदिति की पेंटिंग की कोई प्रदर्शनी थी। उसने मुझे और क्षितिजा दोनों को आने को कहा। अदिति मुझे तो बेतकुल्लफ़ होकर कुणाल बुलाती लेकिन क्षितिजा को मैम कहती। ऐसा लाजिमी भी था, मैं अदिति से कुछ साल ही बड़ा था जबकि क्षितिजा उससे लगभग दो गुनी उम्र की थीं। क्षितिजा हम दोनों की ही हमारे नाम लेकर बुलाती।

उस रोज जब हमें अदिति के चित्रों की प्रदर्शनी में जाना था तो क्षितिजा मुझे पिकअप करने के लिए मेरे कैम्पस आयी। हमेशा की तरह मैं अब तक रेडी नहीं था इसलिए वह ऊपर फ्लैट में आ गई। मैने जस्ट नहाया था। मेरी देह पर अब भी पानी की कुछ बुँदे शेष थी और शरीर पर कपड़ों के नाम पर कमर पर बंधा हुआ केवल एक तौलिया था।

‘जस्ट फाइव मिनट।’ मैने क्षितिजा से कहा और वार्डरोब से शर्ट निकालने लगा।

क्षितिजा ने आज व्हाईट लांग स्कर्ट और स्लीवलेस मैरून कलर का टाप पहना था। इस लिबास मैं उनका सौंदर्य दमक रहा था और सबसे ज्यादा दमक रहे थे उनकी मृणाल बाहों पर बचपन में टीको के लिए लगाए गए नश्तर के निशान।

वार्डरोब से शर्ट निकालकर उसके बटन खोलते हुए मैने क्षितिजा को देखा तो वो मुझे देख रही थी।

‘क्या हुआ कुणाल आज शादी के लिए प्रपोज नहीं किया।’ क्षितिजा ने मेरे हाथ से शर्ट लेकर उसके बटन खोलने लगी थी। मेरे कंधे पर शर्ट को रखते हुए बोली ‘कुणाल मैं शादी को तैयार हूँ लेकिन..।’

‘लेकिन क्या ?’ आज क्षितिजा के अधरों से शादी की बात सुनकर मैने खुशी की अतिरेक में पूँछा।

मैंने भले ही कभी शादी नहीं की लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मेरी लाईफ में तुमसे से पहले कोई पुरुष नहीं आया। आज से जब मैं उम्र के आधे पड़ाव पर थी तो एक लड़का मेरी लाईफ में आया। उससे प्रेम हुआ, सेक्स हुआ, एक संतान भी हुई पर शादी नहीं हुई। फिर मेरी ज़िंदगी में  तुम्हारे मिलने तक न कोई पुरुष आया और न ही शादी को कोई ख्याल आया। मैने गारमेंट्स मनुफैचरिंग का डिप्लोमा किया था, खुद को गारमेंट इंडस्ट्री में झोक दिया। सफलता ने मेरा साथ दिया और आज जो तुम्हारे समाने खड़ी हुई सफल औरत है वो अपनी मेहनत से बनी है। कुणाल जब पहली बार मैं प्रेम में थी तो साधारण लड़की थी और जब अब तुम मेरी जिंदगी में हो तो मैं शादी से पहले वापस साधारण लड़की बन जाना चाहती हूँ।’

‘साधारण लड़की वो कैसे ?’ मैने शर्ट में बाहें डालते हुए पूछा।

‘मैं चाहती हूँ जब कोई मेरी जिंदगी में हो तो मैं उसे नार्मल फीमेल की तरह प्यार करूँ। उसकी पत्नी बनूँ तो उसके लिए ढेरों वक्त रहे मेरे पास। और इतने काम को सँभालने में ये मुमकिन नहीं इसलिए मैं शादी से पहले अपना सारा बिजेनस जरूरतमंद सोसायटी के नाम करना चाहती हूँ। जो तुम्हारी इनकम है, उससे हमारा घर मैं अच्छे से चला सकती हूँ।’

‘कोई इतनी सफल औरत अपना सारा बिजनेस जिसे उनसे इतनी मेहनत से वर्षो में बनाया है उसे यूँ दान कर सकती है। मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मैं अवाक क्षितिजा को देखे जा रहा था। मेरे शर्ट के बटन लगाकर मेरे सीने में सर रखकर वह बोली- ‘कुणाल तुम जब चाहो शादी की डेट निकाल सकते हो।’

‘हाँ क्षितिजा।’ मैं उनके खुले बालों को सहलाकर बोला था।

ड्राईवंग सीट पर बैठकर मैने कार को प्रदर्शनी हाल की तरफ बड़ा दिया। क्षितिजा बगल के सीट पर बैठी थी। मेरे दिमाग में अभी भी यही था क्या क्षितिजा अपनी मेहनत से खड़े किये गए उद्योग को यूँ आसानी से दान कर देंगी। मेरे चेहरे पर उलझन देखकर ‘क्षितिजा ने पूछा ‘क्या सोच रहे हो कुणाल ?’

‘आं.. कुछ नहीं।’ मैने गियर चेंज करते हुए कहा।

‘कुछ तो सोच रहे हो।’

‘आपने कहा आपकी एक संतान थी, अब वो कहाँ है ?’

‘अपने फादर के घर।’

हालाँकि क्षितिजा और अदिति में सहेलियों जैसा बिहेव था लेकिन अदिति हमेशा क्षितिजा को मैम ही कहती थी। जबकि क्षितिजा ने कई बार अदिति से कहा था वो उन्हें मैंम न कहा करे।

जैसे ही हम प्रदर्शनी हाल में पहुंचे अदिति हमारे पास चहक कर आ गयी। उसने क्षितिजा को आज भी मैम कहकर सम्बोधन किया। वहां मौजूद सभी जानने वालो से अदिति ने हमारा परिचय करवाया और फिर हमें लेकर अपनी पेंटिग्स दिखाने लगी। अदिति अपनी पेंटिग्स के बारे में बताते हुए कभी मेरा हाथ पकड़ लेती तो कभी मेरे कांधों पर अपनी नाजुक कलाई रख देती। वो जब ऐसा करती तो क्षितिजा हमसे अपनी नजर हटाकर किसी पेंटिग्स पर लगा देती।

अदिति की पेंटिंग एक्जीबेसन के ढेरों चर्चे हुए। तमाम न्यूज चैनल और मिडिया हाउस ने एक्जीबेसन को कवर किया। अदिति अब एक सफल चित्रकार थी जिसकी चर्चा देश – विदेश में हो रही थी।

अदिति ने कुछ दिनों बाद अपनी इस सफलता के लिए एक पार्टी रखी। मैं और क्षितिजा भी पार्टी में थे। क्षितिजा का कोई बिजनेस रिलेटड व्यक्ति वहां पार्टी में था। वह मुझे पार्टी एन्जॉय करने को कहकर उससे बिजनेस की कुछ बातें करने लगी।

मैंने हाथ में ड्रिंक लिए उसके सिप लेते हुए अदिति के पास जाकर उसे इतनी भव्य पार्टी के लिए बधाई देते हुए कहा – ‘जल्द ही मैं भी ऐसी ही एक पार्टी देने की इच्छा रखता हूँ।’

‘ओ नाईस किस अचीवमेंट के लिए ?’ अदिति ने पूछा था।

‘मेरी शादी की।’ मैने बेफिक्री से कहा।

‘कुणाल जानते हो मेरा एक सपना था। मैं अपने दम पर कुछ बन सकूँ और कोई लड़का मेरी जिंदगी में हो उससे प्यार करूँ, उससे शादी करूँ। मेरा एक सपना पूरा हो चुका है और दूसरा पूरा होने वाला है।’

‘अदिति अब तो तुम कामयाब आर्टिस्ट हो। सुंदरता की देवी हो कौन तुम्हारा हमसफ़र न होना चाहेगा। और कौन है वो खुशनसीब जिससे मोहतरमा ने इश्क फ़रमाया और उसकी बीबी बन कर उसे धन्य करने वाली है।’

अदिति ने मेरी बात सुनकर मेरे हाथ से ड्रिंक लेकर उसका   सिप लेकर बोली ‘कुणाल वो शख्श आप हो। आई लव यू। विल यू मेरी मी।’

अदिति की कही बात सुनकर मैं आश्चर्य से भर उठा। ये खूबसूरत दोशीजा जिसके कदमो में कामयाबी ने अभी अभी माथा टेका था वो मुझसे प्रेम करती थी। मुझ से शादी करने की ख्वाहिशमंद थी। लेकिन मैं, मैं तो पहले से ही किसी के गेसुओं के इश्क में गिरफ्तार था।

हाँ मैं क्षितिजा से प्यार करता था उन्हें शादी के लिए कितनी बार मनाने की कोशिश की थी। और अब जबकि आज क्षितिजा ने शादी के लिए रजामंदी दी तो अदिति मेरे प्रेम का दम भर रही थी।

मुझे खामोश देखकर अदिति बोली ‘कुणाल आज जब आपने ‘शादी’ की पार्टी की बात की मैं कितना खुश हुई ये जानकर कि आप भी मुझसे मुहब्बत करते हो और मुझसे शादी करना चाहते हो।’

‘अदिति तुम्हें ग़लतफ़हमी हो रही है मैने मेरी शादी की पार्टी की बात की थी। हमारी शादी की नहीं।’

मेरी बात सुनकर अदिति ने हाथ का ग्लास पास टेबल पर रखकर पूछा ‘मैं समझी नहीं कुणाल आप क्या कहना चाह रहे हो। क्या आप हमारे अलावा किसी और से प्यार करते हो, किसी और से शादी करने की ख्वाहिश रखते हो?’

‘मैं क्षितिजा से प्रेम करता हूँ और उनसे शादी करने वाला हूँ।’ मैने किसी भूमिका के सपाट शब्दों में कहा। अब मैं किसी तौर अदिति को एक पल भी ग़लतफ़हमी में नहीं रखना चाहता था।

‘व्हाट…क्या कहा कुणाल। आप उस क्षितिजा से शादी करने वाले है। जानते हो उनकी एज कितनी है ? अरे वो मेरे मां की उम्र की हैं।’ मेरी बात सुनकर अदिति ने यूँ पूछा जैसे उसे मेरी बात पर यकीन न हो रहा हो।

‘अदिति तुमने वो गीत तो सुना होगा ‘न उम्र की सीमा हो न जाति का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन’ बस मेरा प्रेम भी क्षितिजा की उम्र को नहीं बल्कि उनके दिल को देखता है।’

मेरी बात सुनके अदिति कुछ पल मुझे आश्चर्य से देख कर तनिक तैश से बोली – ‘कुणाल क्षितिजा से शादी करके क्या हासिल होगा आपको। उनकी खूबसूरती उनकी जवानी कुछ सालो में खत्म हो जायेगी। और उनकी दौलत, वो तो वो दान करने जा रही हूँ। मुझे देखो कुणाल अभी मैंने जवानी की राह पर पहला कदम रखा है। सफलता मेरे कदमों में खेल रही है। पैरेंट्स के पास ढेरों दौलत है। मुझसे शादी करके हमेशा सुखी रहोगे कुणाल। मैं तुम्हे बेपनाह मुहब्बत दूंगी। मैं वादा करती हूँ।’

अदिति की बात का कोई जवाब देता उससे पहले वहां क्षितिजा आ गई थी और मेरा हाथ पकड़ वो अपने एक जानने वाले का परिचय करवाने को ले गई।

अब तक पार्टी शबाब पर पहुंच चुकी थी। अदिति फ्लोर में थिरक रही थी। उसने मुझे इशारे से डांस का निमंत्रण दिया। मैं क्षितिजा का हाथ पकड़े डांस फ्लोर पर आ गया। पार्टी में आये सभी लोग झूमने लगे थे।

रक्स के एक मोड़ पर अदिति ने अपने होठ मेरे होठों पर रखने चाहें तो मैने अपने और अदिति के होठों के बीच में अपनी ऊँगली रख दी। क्षितिजा ने ये सब देखा और डांस के एक वलय पर उन्होंने अपने दहकते अधर मेरे होठों की ओर बढ़ाये तो मेरे प्यासे लबों ने उन्हें यूँ अपनी पनाह में लिया जैस कोई कमल का पुष्प ओस को अपने दामन में भर लेता है।

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हमारी शादी सादगी से हुई। बस मेरे और क्षितिजा के कुछ जानने वाले ही शामिल हुए। अदिति को मैंने और क्षितिजा दोनों ने इन्वाइट किया लेकिन वह नहीं आयी।

मैने क्षितिजा को उनकी संतान को बुलाने को कहा लेकिन वो भी व्यस्तता की वजह से शादी पर नहीं पहुँच पायी। हमारी शादी को दो दिन हुए थे जब क्षितिजा ने कहा उनकी संतान हमसे मिलने आ रही है।

डोरबेल बजने पर दरवाजा मैने खोला था।

सामने अदिति को देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। वो मुस्करा रही थी।

‘भीतर न आने देंगे क्या ?’ कहकर वो भीतर आ गयी। क्षितिजा के गले से लगाकर वह बोली ‘शादी मुबारक हो मम्मा।’

मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। अदिति और क्षितिजा दोनों मुझे मुस्कराते हुए आश्चर्य में डूबा हुआ देख रही थी।

अदिति मेरे करीब आकर मुझे के सोफे पर बिठाते हुए बोली ‘कुणाल हालाँकि आप मेरे मम्मा के हस्बेंड है लेकिन मैं आपको पापा या डैड नहीं कहूँगी। कुणाल ही कहूँगी।’

‘तो तुम क्षितिजा की संतान हो ?’  मैने पहले अदिति और फिर क्षितिजा को देखते हुए पूछा। वह दोनों अब भी मुस्कराये जा रही थी।

‘हाँ मैं हूँ आपकी नई नवेली पत्नी क्षितिजा की संतान उनकी बेटी’ मुझसे कहकर अदिति क्षितिजा से बोली ‘मम्मा कुणाल के मन में बहुत से सवाल होंगे। मैं चाय बनाकर लाती हूँ तब तक आप कुणाल के सवालों को हल कर दीजिये।’

अदिति चाय बनाने चली गई। क्षितिजा मेरे करीब सोफे पर बैठ गई। मेरी सवालिया निगाहें मेरी पत्नी के ऊपर थी। मेरी पत्नी मेरा हाथ अपनी नरम गुदाज हथेलियों में लेकर मेरी शंकाओ का  समाधान करते हुए बोली – ‘कुणाल जिस दिन पहली बार तुमने मुझे शादी के लिए प्रपोज किया मैं उसके अगले दिन ही तुम्हे ‘हाँ’ कहने वाली थी। पर उस दिन मेरी संतान मतलब अदिति मुझसे मिलने आई। मैने उससे तुम्हारे बारे में बताया तो उसने कुछ सोचकर बोला – कहीं ऐसा तो नहीं वो लड़का आपकी दौलत और आपकी सफलता के कारण आपसे शादी करना चाहता है।’

‘कुणाल तुम जब भी मुझे शादी के लिए कहते मुझे अदिति रोक देती – कहती मां कहीं ऐसा न हो कि वो लड़का तुम्हें प्रेम न करता हो, बस आकर्षित हो। फिर हमने एक निर्णय लिया। एक खेल खेला। अदिति तुमसे मिली। तुम्हारे करीब आने का नाटक किया। तुमसे शादी की बात कही। तुमने उससे ठुकरा के ये सिद्ध कर दिया कि तुम्हें मुझ से प्यार है। मेरी उम्र तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखती। कुणाल मुझे माफ़ करो पर तुम मेरी दौलत से तो आकर्षित नहीं इसलिए मैने तुमसे अपनी सारी जायदाद दान कर देने की बात कही। लेकिन तुम पर कोई असर नहीं हुआ। तुम दौलत जाने से कोई फर्क नहीं पड़ा। सबकुछ जानने के बाद भी तुम्हारा प्रेम निर्मल और अविचल बना रहा और तुमने अपनी पत्नी बनाकर मुझे सौभाग्य से भर दिया। कुणाल हमारे नाटक के लिए हमें मुहाफ़ कर देना।’

क्षितिजा मुझसे माफ़ी मांग रही थी जबकि मैं उनके सौंदर्यशाली मुख में खोया था। उनके चेहरे को हाथों में भरकर उनके माथे पर एक बोसा लेकर मैं उनके लबों को चूमना ही चाहता था कि वहां चाय की ट्रे लिए अदिति आ गई।

‘अभी चाय पी लो ये सब हनीमून पर जाकर करना। मैं आपके और मम्मा के हनीमून का अरेंजमेंट कर रही हूँ।’ अदिति ने चाय की ट्रे टेबल पर रखी और सामने के सोफे पर बैठ गई।

‘हाँ मैं भी फ़ौरन से पेश्तर हनीमून पर जाना चाहता हूँ।’ मेरी बात सुनकर क्षितिजा लजा उठी और अदिति हँसते हुए बोली ‘बड़े बेसब्रे हो रहे हो।’

‘बेसब्र नहीं तुमसे कुछ दिन दूर रहना चाहता हूँ ?’

‘वो क्यों भला, मेरी बेटी ने ऐसा क्या कर दिया जो उससे दूर रहना चाहते हो?’ क्षितिजा ने एक कप मुझे देते हुए दूसरा खुद लेते हुए पूछा। अदिति पहले से ही चाय के सिप ले रही थी।

‘अरे क्षितिजा तुम्हारी ये बेटी जितनी बड़ी चित्रकार है उससे ज्यादा बड़ी एक्ट्रेस्स है। इतनी कलाओं में प्रवीण कोई मायावी ही हो सकती है और मायावी से दूर रहना ही अच्छा होता है।’

मेरी बात सुनके पहले अदिति हंसी, फिर क्षितिजा। दोनों को हँसता देख मैं भी हंस पड़ा। अदिति खाली कप ट्रे में लेकर किचेन की और चली गई और क्षितिजा मेरे सर को अपनी गोद में रखकर मेरे बाल सहलाने लगी। क्षितिजा का कोमल स्पर्श पाकर मैने आँखे मूंद ली थी।

इधर मैं क्षितिजा की गोद में सर रखे था। क्षितिजा हलके – हलके मेरा सर दबा रही थी और उधर अदिति ने किचेन में जाकर निढाल हाथो से चाय के कप की ट्रे रख दी। उसके उदास ओठं थरथराये – ‘कुणाल मैं भी चाहती हूँ आप मुझसे दूर चले जाएँ। अब आप से कैसे कहूं आपसे इश्क का ड्रामा करते करते हम किस तौर आपसे इश्क करने लगे हैं। आप दूर चले जाओ और खुश रहो मम्मा के साथ।’

अदिति ने काँपतें हाथो से धोने के लिए चाय के कप सिंक में रखकर पानी का टेप खोला तो उसकी आँखों से आंसू की कुछ बुँदे भी टपक के चाय के कपों में पानी के साथ घुल गई।

— सुधीर मौर्य

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963