अतीत की अनुगूंज -16 : पितु मात सहायक स्वामि सखा…
यह मेरा बीता हुआ कल नहीं है, यह एक अमर स्मृति है। जून की दो तारीख को मेरा जन्मदिन है। इस अवसर पर मैं भगवान् को धन्यवाद करते हुए अपना यह अनमोल अनुभव आप सबसे साझा करना चाहती हूँ।
पिछले सितम्बर की बात है। हम, मैं और मेरे पति मॉस्को देखने गए, मुझे चलने में कठिनाई होती है। बहुत धीरे धीरे ही मैं चल पाती हूँ। छड़ी लेकर चलना ठीक नहीं बैठा, अतः मेरी मित्र ने मुझको एक तीन पहिया गाड़ी दे दी जिसकी सहायता से मैं तेज चल सकती थी। कुछ दूर तक यदि पक्की पटरी हो तो आराम से चल लेती थी मगर यदि ज़मीन उबड़ खाबड़ हो तो चाल और भी धीमी हो जाती थी। अधिक गति दिखाने पर सांस फूलने लगती थी। मेरे पति मेरे कारण धीरे चलते थे।
हॉलिडे एक समूह के साथ था। अंग्रेज सभी बहुत तेज ,ऊंचे लम्बे, बलिष्ठ। हम दोनों उस समूह में सबसे बड़ी उम्र के थे। अक्सर हमारे कारण समूह रुक जाता और इन्तजार करता। जब सीढ़ियों का प्रश्न आता मेरा गडीलना उठाकर ले जाना पड़ता था। अतः मेरे पति उसको उठाकर जैसे तैसे नीचे ऊपर करते और हांफ जाते। दो एक बार ही यह कसरत की उन्होंने। रूस एक बड़ी ताकत अवश्य बन गया, परन्तु विश्व के अन्य देशों की तुलना में अपने अंतःसंयोजन में काफी पिछड़ा हुआ है। पर्यटन की दृष्टि से नगर संरचना बहुत पुरानी है। पर्यटन का विकास किसी भी देश को समृद्धि प्रदान करता है, मगर रूस में यह उदासीनता देखकर आश्चर्य हुआ। विकासशील राष्ट्र हर तरह से पर्यटकों के आराम का प्रबंध करते हैं। यहाँ लिफ्ट आदि की बेहद कमी थी। वृद्धों के लिए अन्य देशों में सभी जगह फिसलनी ढलाने बना दी गईं हैं ताकि वे अपने सहायक यंत्र आराम से उतार चढ़ा सकें। यहां ऐसा नहीं मिला। सब जगह नहीं।
अचानक एक व्यक्ति जो इंग्लैंड का रहनेवाला ही था सामने आया और उसने मेरा गडीलना उठा लिया। इसके बाद पूरे ट्रिप में हम जहां भी गए वह मेरे ऊपर दृष्टि रखता और जाने किस ओर से सामने आ जाता। हर जगह सीढ़ियां, हर जगह वह हाजिर हो जाता। उसने अपना नाम पीटर बतलाया. उसकी पत्नी सारा ही उसको प्रेरित करती थी।
मॉस्को का मेट्रो विश्व का पहला मेट्रो है। मॉस्को पथरीली ज़मीन पर बना शहर है। इस भूमिगत रेलवे को बनाने में हज़ारों मजदूरों ने अपनी जान गवाँई। सारे स्टेशन पत्थरों को काटकर बनाये गए हैं। उस युग में रूस यूरोप का सबसे अधिक अमीर देश था। संभवतः अभी भी है, क्योंकि इसका प्राकृतिक खनिज, वनस्पति, और जल सबसे अधिक हैं। बर्फीले मौसम में मजदूर संभवतः कई कई दिनों तक भूमिगत खुदाई में व्यस्त रहते थे इसलिए वह ऊपर नहीं आते थे। स्टेशन बेहद खूबसूरत बने हैं। इनमें पत्थर के खम्भों पर अनेक भव्य मूर्तियां उकेरी गयी हैं। प्रथम और द्वितीय महायुद्ध के दृश्य भी विशाल काय माप में बनाये गए हैं। इन स्टेशनो को देखने के लिए जाना था। पहले रेड स्क्वायर देखना था।
गाइड ने हमें गले में एक रेडिओ पहना दिया जिसमें उसकी आवाज़ आती थी और ईयर फ़ोन की सहायता से हम उसकी कमेंट्री सुन सकते थे। मगर रेड स्क्वायर मेरे लिए सर दर्द बन गया। कारण वहां पूरा फर्श पत्थर के टुकड़ों से जड़ा था। मैं बहुत पीछे रह गयी। मेरी तीन पहिया गाड़ी चलकर ही न दे। हमारा गाइड लंबा और पतला व्यक्ति था। अपने रेडिओ स्पीकर से कमेंट्री देता वह आगे आगे चल रहा था मगर बहुत जल्द हमें उसकी आवाज़ आनी बंद हो गयी। खुशकिस्मती से जो आवाज़ आ रही थी हमारे ईयर फ़ोन में वह अंग्रेजी में ही बोल रही थी। मगर किसे सुध थी। मैं अपने को संभालती, पति के पीछे चली जा रही थी। तभी वह दूसरी आवाज़ वाली गाइड ने हमें देखा। पर बहुत प्यार से वह बोली। मेरी आँखें छलक आईं थीं। उसने हमें अपने संग जोड़ लिया। जब हमारा गाइड मिला तो वह उस पर नाराज़ हुई। उसने दो बातें कहीं। एक तो यह कि दो वयोवृद्ध लोगों की देखभाल का जिम्मा लिया था, तो धीरे क्यों नहीं चला। दूसरे उसने वह पगडण्डी क्यों नहीं पकड़ी, जिसपर समतल सड़क बनाई गयी है बड़ों के लिए। हमारे गाइड ने फिर भी अपनी तरफ से बहुत कम ध्यान रखा। हमारा ध्यान पीटर और सारा ही रख रहे थे वह भी चुपके से।
रेड स्क्वायर में थोड़ी तफरी करने के बाद हमको रूस के मेट्रो से वापिस जाना था। यह रेल की पटरी सबसे अधिक गहराई पर बनी है। गडीलना तो मैंने हाथ में उठा लिया। कहीं मैं और कहीं मेरे पति उसे लेकर चलते। जब अधिक सीढ़ियां होती थीं तो पीटर आगे आकर उसे लोक लेता। यही नहीं क्लिप आदि हटाकर बंद करता और नीचे पहुँचाने पर उसे खोलकर मुझे पकड़ाता। मैं अभिभूत हो जाती। पर एक जगह इत्तेफ़ाक़ से हम आगे थे। समूह लाइन में लग गया था सामने खूब गहरा एस्कलेटर था। मैंने सोचा केवल तीन किलो वज़न की गाड़ी मैं खुद ही उठा लूंगी बाएं हाथ से और दाहिने हाथ से एस्कलेटर की रेल पकड़कर उतर जाऊंगी. मेरे आस पास लोग तेज गति से उतर रहे थे। मैंने जैसे ही पांव रखा पहली पायदान पर मेरा पाँव रपटने लगा। एस्कलेटर की गति इंग्लैंड से दुगुनी तेज थी। इतनी तेज गति की हमें आदत नहीं थी। मैं चिल्लाई नो आई कांट (नहीं मैं नहीं कर सकती)। डर था कि हाथ में ली हुई गाड़ी कहीं छूट न जाए वरना किसी की जान जा सकती थी। नीचे धड़ाधड़ लोग उतर रहे थे। अगर एक को लगती तो पूरी चैन एक के ऊपर एक गिर जाती। अपने को संभालने के लिए मुझे दोनों हाथों से रेल को पकड़ना जरूरी था। पर क्षण भर में ही किसी के बलिष्ठ हाथ मेरी कमर के गिर्द लिपट गए। एक कोमल स्वर में उसने कहा डरो मत, काम डाउन, शांत हो जाओ, तुम सुरक्षित हो। वह पीटर नहीं था। डेढ़ या दो मिनट की उतराई के बाद मैंने आँखें खोलीं तो उसने पुछा ठीक हो। मेरे हाँ कहने पर वह आगे बढ़ गया। मैं उसका चेहरा भी न देख सकी। भीड़ में से एक सुन्दर भारतीय लड़की सामने आई और उसने कहा कि वह एक डॉक्टर है और यदि मैं ज़रा भी घबरा रही हूँ तो वह रुक जायेगी, पर मैं स्थिर चित्त हो चुकी थी। पतिदेव मेरे पास आ चुके थे। पीटर के हाथ में मेरी गाड़ी थी उसने खोलकर आगे रख दी। मैं ज़िंदा थी। वह मुस्कुरा रहा था। मानो कह रहा हो, क्या तुम सचमुच सक्षम हो कि मेरी सेवा को ठुकरा सको? मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस बात पर शर्मिन्दा थी, अपने फिजूल के साहस पर या उसकी असीमित उदारता पर।
इसके बाद मैंने कहीं भी प्रतिवाद नहीं किया। बड़े बड़े महल देखे जिनमे कहीं भी लिफ्ट नहीं थी। क्रेमलिन का संग्रहालय देखा जिसमे ज़ार के जमाने का खजाना दिखाया गया है। क्रेमलिन के बागीचे देखे। तीन दिन के बाद हम संत पीटर्सबर्ग गए। यहां भी तीन दिन घूमना फिरना किया और पीटर का असीम शुक्रिया कि मैं सब कुछ देख पाई। एक बृहस्पतिवार को हमारा टूर आधे दिन बाद ख़तम हो गया। हम थके थे। होटल वापिस आ गए। शाम को चाय पर बैठे तो पीटर और सारा हमारे संग चाय पीने आये. तभी उनका पूरा परिचय जाना। वह दूर लीड्स नामक शहर से आये थे। हमने अपना पता दिया और उनका हासिल किया। फिर उन्होंने बताया कि वह लोग ज़ार का ईस्टर एग्स का संग्रह देखने गए थे। बदकिस्मती से अगले दिन यह संग्रहालय बंद होता है। अतः हम नहीं देख सके। तिस पर इंग्लैंड वापिस आकर सारा ने अपनी बनाई वीडियो हमें पोस्ट कर दी। ज़ार के पास भारत का हरे रंग का बेहद कीमती हीरा भी था जो उसके राजमुकुट में जड़ा था। मेरी बहुत साध थी इसको देखने की मगर यह एक अलग संग्रहालय में मॉस्को में रखा हुआ है। हमारे ट्रिप में इसके लिए गुंजाइश नहीं थी। इसकी कीमत भी कोहिनूर से कम नहीं है। ज़ार की शादी इंग्लैंड की राजकुमारी से हुई थी अतः उसके दहेज़ में यह हीरा क्वीन विक्टोरिया ने दामाद को दिया था।
रूस तो अब अगले जन्म में ही जा पाऊंगी. मगर पीटर और सारा हमेशा मेरे मन में रहेंगे। उनका और उस अज्ञात व्यक्ति का उपकार मेरा बचा हुआ जीवन है। यूं जीवन मरण तो स्वयं भगवान् लिखता है, पर जब तक घड़ी नहीं आती वह मानव रूप में आकर थाम लेता है। इस ट्रिप के बाद हम एथेंस की सैर को गए। शायद और भी जाते रहेंगे। पर वह गाड़ी अब कहीं नहीं जायेगी!
— कादम्बरी मेहरा