लघुकथा

मानव-सेवा

दीदी,आपने ठीक नहीं किया।एक गूंगी लड़की से विकास भैया की शादी कर दी। आप एक समाज सेविका इसका अर्थ यह नहीं हैं कि आप इतना कठोर निर्णय ले। अरे मेरी बात तो सुन,क्या अब भी कुछ सुनना बाकी रह गया है। मैं तो अब विकास भैया से ही बात करूगी।
ये फ़ैसला तेरे विकास भैया का ही है। नहीं नहीं यकीन नहीं होता दीदी। इसके पीछे जरूर कोई दबाव रहा होगा। कहाँ मेरा भाई एकदम हीरों? और कहाँ वो ,कहतें-कहतें छाया चुप हो गई।
पर दीदी आपको तो उसे रोकना चाहिए था। सारी जिन्दगीं अब परेशानी में गुजरेंगी। अच्छा सुनों उस दिन तेरे पापा का जन्मदिन था। विकास ने जिद्द की मम्मी हम नारी निकेतन चलते हैं। जैसे ही हम वहाँ पहुंचे। हमनें साड़ियां बॉटनी शरू कर दी। तभी विकास की नज़र दीपा पर पड़ी, उसने साड़ी ली ।पर कुछ जवाब नहीं दिया।जैसे ही विकास को पता चला कि वो गूँगी हैं।तो वो उससे शादी की जिद्द पर अड़ गया।जब मैंने उसे रोकने का प्रयास किया,तो उसने कहा, माँ आप अपने अनाथालय में यहीं सेवा करती है। या सिर्फ सेवा का दिखावा करती हैं। मम्मी नर सेवा ही नारायण सेवा हैं।यही सच्ची मानव-सेवा है। तभी एक सुन्दर सी लड़की ने छाया के पाँव छुए।उसका रूप-सौंदर्य देख हैरान रह गई।मन ही मन विकास की तारीफ कर रही थी।

— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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