पर्यावरणलेख

मनुष्यों की विलासी प्रवृत्ति ही पक्षियों की विनष्टता का कारण !

मनुष्यों की विलासिता के कारण पक्षीगण विनष्ट होते जा रहे हैं ! विज्ञान से विकास तो होती है, किंतु उसके सामने चुनौती भी आती है । विकास हमारी टेक्नोलॉजी का परिणाम है । हम आत्मनिर्भर तो होते हैं, किंतु प्रकृति से दूर होते चले जाते हैं । हमारी अपेक्षा जब महत्वाकांक्षा में तब्दील हो जाती है, तब मानवेतर प्राणियों के प्रति हम कुटिल हो जाते हैं, यह कुटिलता जटिलता के सापेक्ष हो जाता है । यह विदित हो चुका है कि गोरैया पालतू पक्षी है, किंतु उस सुग्गे की भाँति नहीं, जो सोने के पिंजरे में बंद होकर सोने की कटोरी में दूध-भात खाती हैं । उस कबूतर की भाँति भी नहीं, जो पालतू बन अपने मालिक को अपने बच्चे का भोग लगाती हैं । विकास होनी चाहिए, किंतु यह विकास विनाश नहीं बने ! जंगल की बेतहाशा कटाई न होकर उनसे परिपक्व पादपों की ही सफाई हो, तो बेहतर है ! मनुष्य के अंदर जो दिल है, दरअसल में गोरैया पक्षी उनके ही करीब है । जब मानव दुष्ट प्रवृत्ति के होते चले जायेंगे, तो गोरैया भी दिल के मरीज व हृदयाघात के शिकार होंगे ही ! यह भावनात्मक-लगाव ही है, जो गोरैया को जीवन प्रदान करता है । यह प्राणी प्रकृति और शिष्ट मनुष्यों के बीच सहचारी का कार्य करती हैं । मानवीय बच्चे इनके करीब तो हैं, किंतु ज्यों-ज्यों ये बच्चे मर्द बनते जाते हैं, उनके व्यवहार में तब्दीली आती जाती है । हमारी नई पीढ़ी इन सबके साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है । ऐसे कितने घर हैं, जहाँ दूसरे के पशु-पक्षियों को या वन्यजीवों के लिए दरवाजे या मुंडेर पर दाना-पानी रखते हैं, उत्तर मिलेंगे- 1% से भी कम ! गोरैया मनुष्यों के प्रकृति और सदवृत्ति से जुड़ी प्राणी हैं, वे शिष्ट मनुष्यों के शुभचिन्तक हैं ! वैसे वे सभी प्रकार के मनुष्यों के शुभचिंतक हैं, किंतु अशिष्ट मनुष्यों की धूर्त्तता से उनकी प्रजाति विलुप्त होती चली जा रही है। हाँ, यह सच है कि शीशे के आगे हम मानव ही चेहरे नहीं निहारते हैं, अपितु गोरैये आदि प्राणी भी शीशे के साथ स्वयं को निहार स्वयं को दिलबाग कर बैठती हैं।

आज उनके संरक्षण की महती आवश्यकता है । दुनिया भर में 20 मार्च को गोरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाकर हम उसके प्रति सहानुभूति दिखाते हैं । सिर्फ एक दिन ही क्यों ? बाकी 364 दिन क्यों नहीं ? ध्यातव्य है, यह दिवस पहलीबार 2010 में मनाई गई थी । लेखक प्रभुनाथ शुक्ल ने  प्रसिद्ध पर्यावरणविद मो. ई. दिलावर के प्रयासों को नमन किया है ।आदरणीय पर्यावरणविद के बहाने उन्होंने लिखा है कि गोरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मो. ई. दिलावर नासिक से हैं। वह बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से जुड़े हैं। उन्होंने यह मुहिम 2008 से शुरु की थी। आज यह दुनिया के पचासाधिक देशों तक पहुंच गयी है । गोरैया के संरक्षण के लिए सरकारों की तरफ से कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखती है। पर्यावरणविद मोहम्मद ई. दिलावर ने कहा कि लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है। पर्यावरणविद दिलावर के विचार में गोरैया संरक्षण के लिए लकड़ी के बुरादे से छोटे-छोटे घर बनाए जाय और उसमें खाने की भी सुविधा हो। उनके विचार में मोर (मयूर) की मौत का समाचार मीडिया की सुर्खियां बनती है, लेकिन गोरैया को कहीं भी जगह नहीं मिलती है। वह आगे  कहते हैं कि अमेरिका और अन्य विकसित देशों में गोरैयों सहित सभी पक्षियों के ब्यौरे भी रखे हैं । उन्होंने पक्षियों के संरक्षण के लिए कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग आफ इंडिया के नामक् वेबसाइट भी बनायी है, जिसपर कोई भी पक्षियों से संबंधी जानकारी और आंकड़ा निकाल सकते हैं। यह संस्था स्पैरो अवार्ड्स भी देती है। ज्ञातव्य है, आंध्र यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में गोरैया की आबादी में 60 फीसदी से अधिक की कमी आयी है। ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसाइटी आफ प्रोटेक्शन आफ बर्डस‘ ने विलुप्ति के कारण इस चुलबुली और चंचल पक्षी को ‘रेड लिस्ट‘ में डाला है । दुनिया भर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है । गोरैया पासेराडेई परिवार की सदस्य है, लेकिन इसे वीवरपिंच का परिवार का भी सदस्य माना जाता है । यह अधिकांश झुंड में रहती है । यह अधिकतम 2 मील की दूरी तय करती है । गोरैया को अंग्रेजी विज्ञान में पासर डोमेस्टिकस के नाम से बुलाए जाते हैं। इस पक्षी को अधिक तापमान अखरता है।

मैं मोबाइल टावर की बात नहीं कर रहा, किंतु अगर लगातार मोबाइल व्यवहार से उपयोगकर्त्ता को क्षति पहुंच सकती है, तो असंख्य चालू मोबाइलों से निःसृत rays and radiation की उपस्थिति मात्र से यह छोटी चिड़िया के दियाद-गोतिया विनष्ट होने के कगार पर क्यों नहीं पहुँच सकती है, सिर्फ गोरैया की नहीं ! छोटी चिड़िया बुलबुल, रसपिया या रसपीया आदि की यही दु:स्थिति है । गाँव भी शहर बनते जा रहे है । वनों का सफाया, युवा वृक्षों की कटाई, तालाबों में मिट्टी भरकर सपाट किये जा रहे हैं, उसपर गैस गोदाम या पेट्रोल पंप बन रहे हैं । विदित हो, छोटी-छोटी पक्षियों को नदियों से जल ग्रहण करने में डर और संकोच होती है, किंतु तालाबों व पोखरों से ऐसा नहीं होती है । बहती नदियों के जलस्रोत में हिंसक जलीय जीव भी तो सकते हैं । इसके साथ ही गोरैये के डैने उतने मजबूत भी तो नहीं होते हैं । बाग-बगीचों अथवा शहरी पार्कों में मनुष्यों ने ही तो कब्जा कर रखे हैं । मिट्टी और फुस का घर गोरैयों के आवासन के लिए सबसे अनुकूल है। आकाश चूमती इमारतें और संचार-संबंधी तमाम activities उनके लिए जीवन दूभर कर दिए हैं । मोटरकारों, रेलों की पों-पों सहित प्रदूषित पर्यावरण और उद्योग-धंधों की विकास-यात्रा लिए कल-कारखानों से निकली धुंए से उनके जीवन अभिशप्त हो रहे हैं । गोरैया घास के बीजों से भी अपनी आहार चुगती है । पर्यावरणप्रेमी से लेकर पर्यावरणविद तक गोरैयों के दशा एयर दिशा को लेकर बेहद चिंतित हैं, परंतु भारत के ही नहीं, प्राय: देशों के वन और पर्यावरण मंत्रालयों का रुख इस ओर बेरुखी लिए है। कृषि में भी जैविकनाशक दवाइयों का छिड़काव बीज को विषाणु बना दे रहे हैं, हालाँकि यह मनुष्यों को सीधे तौर पर attack नहीं कर रहे हैं, किंतु गोरैयों द्वारा इन कीड़े-मकोड़े को चखने मात्र से वे असमय काल-कवलित हो रहे हैं । पतंगबाजी प्रतियोगिता, हवाईअड्डे के आसपास वाले क्षेत्र, तो चील, गिद्ध, कौवे इत्यादि झपटमार बड़े पक्षी भी उन्हें ‘चट मंगनी, पट ब्याह’ की भाँति उन्हें शीघ्र ही आहार बना लेते हैं । ज्ञात हो, पतंगों के खेल में उनके चोंच, पैर, पंख और आँख घायल हो जाया करते हैं । गोरैयों के अंडे, बच्चे व चूजे को सर्प आदि हिंसक जीव या दुष्ट प्राणी आहार बना लेते हैं । भारत में गोरैया संरक्षण के लिए नियम बनानेवाले महाराष्ट्र पहले राज्य हैं, उत्तर प्रदेश दूसरे, दिल्ली तीसरे और चौथे में बिहार आते हैं। सर्वप्रथम वर्ष 2008 में गोरैया के संरक्षण के लिए जागृति लिए चलाई गई  वैश्विक मुहिम ने रंग लाई । विश्व गोरैया दिवस 20 मार्च 2010 को पहलीबार व्यवस्थित ढंग से नेचर फाइबर सोसायटी के द्वारा मनाया गया। सनद रहे, प्राय: गोरैये का जीवन काल 11 से 13 वर्ष होता है। यह समुद्र तल से 1,500 फीट ऊपर तक पाई जाती है। गोरैया पर्यावरण में कीड़ों की संख्या को कम करने में मदद करती है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.