बिखरे शब्द
बिखरे शब्द
बार बार दिखते थे
टकराते थे मेरी कलम से
फिर न जाने क्यों लौट जाते थे,
शायद मैं ही उन्हें पहचान न पाया
न ही उन्हें कुछ तोड़ मरोड़ पाया .
शब्द तो अपने में सच्चे थे,
शायद हम ही शायरी के आगे बच्चे थे,
लेकिन जैसे ही तुम्हारा ख्याल आया
कुछ बिखरे शब्द मोती बन गए
कुछ महकते फूल बन गए , और उन्हें ,
मैंने कविता की माला में पिरो दिया
यही तो है प्यार की शक्ति
जिसने एक नाचीज़ को भी कवि बना दिया
— जय प्रकाश भाटिया