राजनीतिलेख

आपातकाल (25 जून 1975) से लॉकडाउन (25 जून 2020) तक !

आपातकाल यानी कमीनापन और हरामीपन से बहुत आगे है क्या ? मुझमें महिलाओं के प्रति हमेशा ही सम्मान व आदर के भाव रहे हैं, तथापि मैं यह समझता हूँ, मामूली प्राइमरी स्कूल की हेडमास्टरनी भी पदभार ग्रहण के सप्ताहांत तक अपने सहकर्मियों और बच्चों के प्रति ‘डिक्टेटर’ हो जाती हैं । जिला के महिला जिला पदाधिकारी भी स्वभावतः ‘कड़क’ होती है! मुझे लगता है, अनुशासन का ‘विद्रूप’ अवस्था ही ‘डिक्टेटरशिप’ है।

25 जून 1975 को कुछ माह का था, इसलिए मैं लौहमहिला की लौहसत्ता से निःसृत ‘आपात’ कुव्यवस्था से अनभिज्ञ रहा, किन्तु अपने दादाजी और पिताजी से जरूर जाना कि तब लगभग 2 साल तक ‘कर्फ़्यू’ स्थिति लिए थी। अखबार बंद था, रेडियो से महारानी इंदिरा और उनके कैबिनेट के अनुसार ही समाचार प्रसारित होती थी। चाय की दुकान ही नहीं, वहां फुसफुसाहटें बन्द थी। इसी क्रम में संजू (संजय गांधी) और उनकी बंशी (बंशीलाल) ने ‘नसबन्दी’ का ऐसा चक्रव्यूह चलाये कि मेरे रिलेशन के कई अविवाहितों का जबरदस्ती नसबंदी करा दिया गया।

नमक की आपूर्त्ति नहीं हो पा रही थी । साप्ताहिक हाट लगने बन्द हो गए थे । मेरे पिताजी के वेतन बन्द हो गए थे, घर की हालत निरीह ‘बकरी’ जैसी थी ! …. भय, भूख, कोख ….सब खाली ! कांग्रेस का यह काला चेहरा ! गोरी प्रियदर्शिनी की कलंकिनी रूप ! प्रथम महिला प्रधानमंत्री की ऐसी भयावह रूप ! ‘1971’ में बनी लौह महिला की छवि ने सब खत्म कर दी …. विरोधियों को जेल, कोई बेल नहीं ! मैंने प्रथम महिला राष्ट्रपति को देखा है, जो रिटायर्ड के बाद सभी गिफ़्ट ‘मुम्बई’ लेकर चली गई !

देश की जनता ने कांग्रेस और इंदिरा नेहरू गांधी को हराया, किन्तु नादान जनता का दिल 2 साल इंदिरा-बिछोह सह नहीं पाए और फिर इतना होने के बाद भी उन्हें पुनः प्रधानमंत्री बना दिए। मैं सिर्फ प्रजा नहीं, देश की सत्ता पर किसी एक परिवार या किसी एक जाति या धर्म का अधिकार नहीं, मेरा भी है….. अंतिम पंक्ति में खड़ा एक गरीब कुम्हार भी प्रधानमंत्री बनना चाहता है! पार्टियों में लोकतंत्र गायब है, परिवारवाद हावी है । एक ही व्यक्ति बीस-बीस सालों से पार्टी सुप्रीमों बने हुए हैं, वे पद छोड़ते भी हैं, तो अपनी ही संतान को देते हैं ! पार्टी कार्यकर्त्ताओं की भूमिका सिर्फ उस ‘परिवार’ के नाड़ चाटने भर रह जाती है!

एक नेतवन आपातकाल के विरुद्ध हल्लाबोल किए, जेल गए । वहां पता चला, प्रथम संतान हुई है, जिस एक्ट के तहत बन्दी हुआ था, विरोध में उस एक्ट के नाम पर संतान का नाम ‘मीसा’ रख लिया, जो आज माननीय  सांसद हैं, बावजूद यह शख़्स अबतो ताउम्र आपातकाल के सरगना की चरणपादुका को ढो रहा है । ’96 के साल में सालाओं के हुंवारी में ऐसा ‘भूसा’ डकार गए हैं कि अब तो पटना छोड़ मुम्बई में भोगन्नर का इलाज कराए ! बावजूद रिम्स ही जेल बना हुआ है।

दुबारा ‘काला अध्याय’ की किसी भी क्षेत्र में पुनरावृत्ति न हो, हमें सतर्क रहना ही होगा! हम लॉकडाउन में जी रहे हैं, आपात (कर्फ़्यू) -सी कई बातें लिए, किन्तु विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  विनष्ट नहीं हुई ! आपातकाल में प्रेस पर सेंसरशिप रहना मुँह पर जाबी (ताला) लगाना था, लॉकडाउन में यह जाबी (मास्क) कोरोना कहर के कारण है!

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.