गीत
आँसू ख़ुशी अमिय विष जो भी हिस्से आया है।
ये सब कुछ अपने कर्मों से स्वयं कमाया है।
सार्वभौम है सत्य यही है गीता की वाणी
जिसने जैसा बीजा फ़ल भी वैसा पाया है।।
ईर्ष्या द्वेष क्रोध मद पसरा है जिसके मन में
बाँध लिया है जिसने ख़ुद को माया बंधन में।
भौतिक संसाधन में ढूँढा जिसने सुख बंसल
शांति नही पा सकता वह जन अपने जीवन में।।
प्रेम सुधा से प्रेमी का मन तर्पण करके जी
अपने प्रियतम पर यह तन मन अर्पण करके जी।
दुनिया रखे मुखौटे जितने अपने आनन पर
बंसल तू आनन को मन का दर्पण करके जी।।
किसको कितना हँसना कितना रोना निश्चित है
पाना निश्चित और किसी को खोना निश्चित है।
सुख दुख मिलन विछोह सभी कुछ तय करती विधिना
परिवर्तन है नियम श्रृष्टि का, होना निश्चित है।।
— सतीश बंसल