कविता

बूँद बरसा दो

बूँद बरसा दो
मन हरसा दो
गगन हो मगन
धरा सरसा दो
गिरी श्रृंगार धरें
दिशा टंकार करें
सर छुएं मेड़
नदी हुंकार भरें
बिखरें हर रंग
पुरवा करें तंग
दादुर के बोल
झींगुर के संग
माह सावन का
मन भावन का
हर हर बम बम
वक़्त उच्चारण का

— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201