बूँद बरसा दो
बूँद बरसा दो
मन हरसा दो
गगन हो मगन
धरा सरसा दो
गिरी श्रृंगार धरें
दिशा टंकार करें
सर छुएं मेड़
नदी हुंकार भरें
बिखरें हर रंग
पुरवा करें तंग
दादुर के बोल
झींगुर के संग
माह सावन का
मन भावन का
हर हर बम बम
वक़्त उच्चारण का
— व्यग्र पाण्डे