शिक्षक और सेवाशर्त्त !
बिहार के नियोजित शिक्षकों के आत्मसम्मान और हक-हकूक पर माननीय उच्चतम न्यायालय में 12.07.2018 की तारीख में हुए विशद चर्चा पर पटाक्षेप की संभावना अथवा पक्ष में न्यायादेश की बड़ी उम्मीद थी, किन्तु सरकारी दु:प्रयासों से ऐसा हो नहीं सका !
ध्यातव्य है, बिहार के सभी तरह के चुनावों में महत्वपूर्ण किरदार में ये नियोजित शिक्षक ही रहते हैं, जबकि ये सरकारी सेवक नहीं हैं और न ही इनके सेवाशर्त्त बन पाए हैं, जबकि ऐसा नियम है कि चुनावों में सरकारी सेवक ही भाग लेंगे । ऐसी परिस्थिति में नियोजित शिक्षकों के साथ हुए सभी चुनाव वैध कैसे हो सकते हैं ? इसलिए नियोजित शिक्षकों को ‘सरकारी सेवक’ के तौर पर मान्यता न केवल आवश्यक, वरन अनिवार्य है।
बिहार सरकार ने एकबार पुन: यानी 13 वर्ष के समापन पर नियोजित शिक्षकों के सेवाशर्त्त को लेकर कमेटी पुनर्गठित किए हैं। देखना है, यह कितने प्रभावी हो सकते हैं ? ज्ञात हो, बिहार 2006 में शिक्षकों के नियोजन की नियमावली बनी, दिसम्बर 2016 में एतदर्थ शिक्षक नियोजित हुए । सन 2015 में वेतनमान और सेवाशर्त्त को लेकर कमेटी बनी, अब फिर पुनर्गठित हुई है!