गीत/नवगीत

वीरों की गाथा गाता हूँ…!

भारत माता  हृदय की तेरी,
            भाव रगों में जगाता हूँ।
मातृभूमि की कर्ज जो हमपर,
      प्राणों की आहुति लगाता हूँ।
जो चुभती पीड़ा दिए सरहद ने,
     उस वीरों की गाथा गाता हूँ।
 धन्य सपूतो की माताओ को,
      जन्म अमर वीरों को दिया।
युगों युगों तक अमर रहेगा,
      स्वर्णिम अक्षर नाम दिया।
 न आतंक की धौस चलेगा,
       अब न आँसू माँ की बहेगी,
रोयेगा जो दुश्मन अब तो,
       आतंकी की ख़ाक रहेगी।
एक शहीदी कुर्बानी से,
               हाथ न खाली जाएगा।
एक खून की बदला लेने,
              सौ सौ लाश गिराएगा।
कसम तुझे है मातृभमि,
              दूध का कर्ज निभाना है
सर कफ़न बांध चले,
        रणजीत लौट फिर आना है।
भूल थी जो समझ न पाए,
        मित्र समझ जो गले लगाए।
होगा न गलती ऐसा दोबारा,
             रण में दहाड़ लगाएंगे।
   सुलह सलाह की क्या बात करें,
             ये तो बात पुरानी है।
ईंट का जवाब पत्थर से देंगे ,
               ये वीरों की ज़ुबानी है।
अब कौन समझाए उसको,
           दुष्ट आतंकी का चोला है।
चैन अमन की जिंदगी पे,
            विष अमृत पे घोला है।
अभी समय अब ही बदल लें,
                वक्त की ये पुकार है।
 हृदय घात पे घात न कर,
           ये महाकाल की हुंकार है।
— दिब्यानन्द पटेल

दिव्यानन्द पटेल

विद्युत नगर दर्री कोरबा छत्तीसगढ़