लघुकथा

कमाने की दौड़

पति के गुजर जाने के बाद भी कमला ने घर-घर काम करके और जीवन भर लोगों की बात सुनते हुए जैसे-तैसे अपने इकलौते बेटे अमर को पढ़ाया।उसने कभी भी अमर को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह एक कामवाली का बेटा है।उसने रोटी कमाने के लिए दिन-रात एक कर दिया।सुबह से रात तक जगह-जगह काम करके जैसे तैसे वह अपने घर का खर्चा चलाती थी।लेकिन उसने कभी भी अमर को किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी।धीरे-धीरे अमर बड़ा हुआ। बचपन से ही अमर एक शरारती बच्चा था।उसने कभी भी यह महसूस ही नहीं किया कि उसकी माँ कितनी परेशान होकर अपना और उसका गुजारा चलाती है।कमला की जीवन भर की मेहनत रंग लायी और अमर ने अपनी ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की।पढ़ाई पूरी करने के बाद अब कमला को इस बात की तसल्ली थी। कि अब कुछ समय बाद उसका बेटा कामकाज पर लग जाएगा और उसके जीवन से दुखों का अंधियारा छट जाएगा।

अमर अपनी आदत के अनुसार बहुत ही लापरवाह था।लेकिन अब जब वह बड़ा हो गया था। तो कहीं ना कहीं नौकरी तो करनी ही थी।लेकिन अमर हमेशा नौकरी करने से बचते रहता था।पूरी उम्र प्यार से पला हुआ अमर आलसी हो चुका था। सुबह से शाम तक बाहर घूम कर आता था और अपनी माँ से कह देता नौकरी लग ही नही रही है।इस बीच कमला इतने घरों में काम कर चुकी थी। कि उसने अपनी जान पहचान से अपने बेटे को एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी पर लगवा ही दिया।अब अमर की मजबूरी थी कि वह नौकरी करे।लेकिन कामचोर अमर की काम करने में कोई भी रुचि नहीं थी।उसे पता था कि वह कुछ करें ना करें,उसे तो शाम को अपना आराम से रोटी मिल ही जाती है।फिर वह काम क्यों करे।लगभग एक महीने बाद उसने अपनी माँ से कहाँ,माँ,नौकरी में मजा नहीं आ रहा।कभी दिन की तो कभी रात की ड्यूटी होती है। पेस्टिसाइड बनाने की फैक्ट्री में मैं सुबह से शाम तक परेशान ही रहता हूं।

कमला ने अमर से कहाँ, बेटा तुझे चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।अभी मेरे नौकरी करने से हमारी रोजी-रोटी की व्यवस्था हो जाती है।तुम कोई और नौकरी ढूंढना शुरू कर दो।लगभग साल भर अमर का यह ड्रामा चलता रहा।वह कहीं भी टिक कर नौकरी करता ही नहीं था।कहीं कुछ परेशानी बता देता था और कहीं कुछ परेशानी बता देता था।एक दिन अमर घूमते-फिरते एक घर के सामने से गुजरा।वहां पर उसकी मां झाड़ू पोछे का काम करती थी।तपती धूप में अमर ने दूर से अपनी मां को कपड़े धोते हुए और झाड़ू पोछा करते हुए देखा।आज उसे पहली बार कुछ शर्मिंदगी महसूस हुई। तभी उस घर की मकान मालकिन बाहर निकल कर आई और उसने उसकी माँ से कहा,अरे कमला अब तो बेटा बड़ा हो गया है।बस अब कुछ दिनों बाद तो तुम्हारा संकट कट ही जाएगा। *तभी कमला का दर्द उसकी आंखों से छलकने लगा,उसने कहां,मालकिन रोजी-रोटी की दौड़ में मेरा पूरा जीवन निकल गया और मैं जानती हूं मेरे बेटे का किसी भी काम में दिल नहीं लगता है।इस कारण हो वो रोज-रोज कोई ना कोई नाटक करता है।*

लेकिन मैं उसकी माँ हूँ, मैं अब भी उसे कुछ नहीं कहूंगी,मुझे ऐसा लगता है मालकिन मेरी रोजी-रोटी कमाने की दौड़ जिंदगी भर चलती रहेगी।अमर दूर से यह बात सुन रहा था।शर्मिंदगी से उसका चेहरा झुक गया था।उस दिन के बाद अमर ने किसी भी नौकरी के लिए कोई भी बहाना नहीं बनाया और धीरे-धीरे लगभग एक साल बाद आज उसने अपनी मां से आकर बोला,मां अब रोजी-रोटी कमाने की जिम्मेदारी मेरी है।इसके लिए अब आपको किसी के भी झूठे बर्तन धोने की जरूरत नहीं है। कमला की आंखों में आज भी आंसू थे।लेकिन इस बार ये खुशी के आंसू थे।आखिर उसके बेटे को यह पता चल ही गया था कि रोटी कैसे कमाई जाती है।

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- neerajtya@yahoo.in एवं neerajtyagi262@gmail.com ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)