कविता

वीर उठ युद्ध कर

वीर उठ युद्ध कर….अन्याय के विरुद्ध चल
रण में तू एक सही….फिर भी तू युद्ध कर
न्याय को आधार दे…साहस का प्रसार दे ,
अंधकार घना सही…प्रकाश की पुकार कर,
वीर उठ युद्ध कर….अन्याय के विरुद्ध चल।
वीरता का प्रमाण दें….शत्रुओं के सर काट दे ,
सीखा सबक तू छल का ..सत्य के साथ चल,
निर्बलों को तू तार दे….है यह प्रण कठिन सही
अंत वीरगति सही ….फिर भी तू प्रहार कर ,
वीर उठ युद्ध कर…. अन्याय के विरुद्ध चल l
रास्ते कठिन बहुत …संकट की अपार है
शत्रु भी प्रबल बहुत …वार ही वार है,
थक तू गिरा जरूर ….पर नहीं ये तेरी हार है ।
खुद को तू याद कर ….वीरता का संचार कर।
शत्रुओं को ललकार कर….तलवार को धार दे
उठ और हुंकार भर…आंखों के डोरे लाल कर,
शत्रुओं का काल बन….वक्त यही है सही,
जीत की पुकार में….हार को नकार कर
वीर उठ युद्ध कर…अन्याय के विरुद्ध चल ।
जीत तय ना सही …पर हार भी तो तय नहीं
यह प्रश्न भी तो कभी …वीर का है नहीं ,
योद्धा वही सही …जिसे मौत का भय नहीं
युद्ध धर्म है मान ले…वीरता को सम्मान दे।
वक्त की मांग यही…बिना लड़े न प्राण दे,
बात यह भी सही…वीर मारता नहीं
चिता जले भी तो…योद्धा जलता नहीं,
योद्धा का बलिदान भी …अमरता का सोपान है
जब मौत वीर की….अपने पीछे द्वंद का प्रवाह दे ,
यही तो एक वीर के…शौर्यता का प्रमाण है
तुझमें भी अर्जुन कहीं ….तू भी चक्षु साध वही,
कृष्ण का पार्थ बन….धर्म को सदृश कर,
वीर उठ युद्ध कर…अन्याय के विरूद्ध चल।

— सुष्मिता सिंह

सुष्मिता सिंह

मैं उत्तर प्रदेश जिला प्रतापगढ़ के तहसील कुंडा की निवासी हूं वर्तमान में केंद्रीय विद्यालय के प्राथमिक विभाग में कार्यरत हूं। हिन्दी साहित्य को पढ़ने का शौक मुझे बचपन से रहा है। मैं सतत लिखने का भी प्रयास करती रहती हूं मेरी कविताएं पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी है।कुछ ऑनलाइन काव्य पाठ में भी अपनी कविताओं से लोगो तक पहुंचने का मौका मिला है। मेरी इच्छा बस इतनी है कि साहित्य में कुछ सार्थक सहयोग दे सकूं।