मुक्तक/दोहा

दोहा मुक्तक : चितचोर

1-
तोड़ नेह के बाँध तुम, चले गये चितचोर ।
धधक रही अति वेदना,मचा हृदय में शोर ।।
दावे सारे खोखले, वादे झूठे यार
बेबस बेचारा हुआ, अटूट प्रेम की डोर ।।

2-
चितचोर तुम्हारी बांसुरी, मन को लेती मोह।
ब्रज की सारी गोपियाँ, लगी दिखाने छोह ।।
जल जल मन में सोचती, हुई बांसुरी सौत।
सातों ताले दूँ छिपा, तुम लेते हो जोह ।।

3- जीवन के इस मोड़ पर, छाया तम चहूँओर।
भवसागर में हैं फँसे, दिखे नही अब छोर ।।
हाथ उठाकर हे प्रभु, शरण लगाओ आप ।
तुम ही हो बस आसरा, मनमोहन चितचोर।।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)