कविता

शिक्षक दिवस: दो कविताएं

(शिक्षक दिवस विशेष)
1.शिक्षक और छात्र

आओ मिलकर संधान करें,
खुद अपना ही कल्याण करें-

क्यों छात्र सुस्त है कुंठा से?
क्यों दृष्टि है उसकी शंकालु?
आक्रोश भरा उसका मन क्यों?
पहले तो था वह श्रद्धालु,
क्यों मारपीट में मन लगता?
क्यों तोड़फोड़ है वह करता?
क्यों नैय्या उसकी डोल रही?
बस जीने का वह दम भरता.

है चारों ओर कपट-छलना,
हत्या का दौर चला भारी,
है लूटपाट चहुं ओर मची,
कब कहां चले किस पर आरी?
कोई भी शंका-रहित नहीं,
आक्रोश भरा सबके मन में,
कुंठा का बरबस डेरा है,
श्रद्धा कैसे होगी मन में!

इस कारण छात्र भी शंकित है,
उसको नहीं कोई पथ सूझे,
भावी जीवन की चिंता में,
वह कुंठाओं से बस जूझे.
उसको सत्पथ दिखलाना है,
उसका जीवन महकाना है,
शिक्षक को दिग्दर्शक बन कर,
अपना कर्त्तव्य निभाना है.
4.9.1985

-लीला तिवानी
—————————–

2.सच्ची शिक्षा
यों तो समझा जाता है यह,
शिक्षा का है अर्थ सीखना,
लिखना-पढ़ना-गिनना शिक्षा ,
पर क्या यह ही होता सीखना?

केवल साक्षर बनने से ही,
शिक्षा पूरी कब होती है?
पढ़-लिखकर गुनना भी सीखो,
तब शिक्षा सच्ची होती है.

सच्ची शिक्षा वह है जो,
मानव में सद्गुण उपजाए,
अच्छी नैतिक शिक्षा देकर,
सच्चरित्रता का पाठ पढ़ाए.

शिक्षा भी ऐसी हो जिससे,
रोजी-रोटी भी मिल पाए,
अपने पांव पर खड़े रह सकें,
इज्जत से जग में जी पाएं.

तन-मन दोनों स्वस्थ बनें,
जीवन में खुशियां आ जाएं,
प्रेमभाव से रहना सीखें,
सुसंस्कृत और सभ्य कहाएं.

देश-विदेश की अच्छी बातें,
सीखें-समझें-ज्ञान बढ़ाएं,
इनको जीवन में अपनाकर,
सारे जग को सुख दे पाएं.

जन्मजात गुण विकसित करके,
नवाचार अर्जित कर पाएं,
मानव सामाजिक प्राणी है,
अनुकूलन की प्रतिभा पाएं.

सच्ची शिक्षा वह ही है जो,
मानव को मानवता सिखलाए,
राष्ट्र-एकता, विश्व-एकता,
पाठ पढ़ा जीवन सरसाए.
13.6.1986
-लीला तिवानी

आप सबको शिक्षक दिवस की कोटिशः शुभकामनाएं.

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “शिक्षक दिवस: दो कविताएं

  • लीला तिवानी

    शिक्षक, शिष्य और शिक्षा एक त्रिकोण है, जिसके इर्द-गिर्द जीवन की अनमोल संपत्तियां घूमती रहती हैं. शिक्षक योग्य हो, कर्मयोगी हो तो शिष्य भी उसी सांचे में ढल जाता है और तब सृजन होता है सच्ची शिक्षा का. एक शिक्षिका होने के नाते हमें गर्व है, कि हमने अपने कर्त्तव्य का भलीभांति निर्वहन किया. हमारी छात्राएं अध्ययन के प्रति जागरुक रहीं और रुचि लेकर पढ़ती रहीं, यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है. छात्राओं को पढ़ाने के लिए हमने जो नित नए प्रयोग किए, वे ही एक दिन नवाचार का रूप लेकर हमारे लिए राज्य व राष्ट्र स्तर पर पुरस्कार दिलाने का उपक्रम बने. राष्ट्र स्तर पर पुरस्कार मिलने के अवसर पर मैं अपनी दो छात्राओं को भी साथ ले गई थी. उन छात्राओं ने भी वह सुनहरा मंजर देखा. हमें गर्व है कि शिक्षक होने के नाते हम चुनाव-आयोजन, पोलियो-मुक्ति अबियान, जनगणना आदि बहुत-से कार्यक्रमों में सहभागी बन सके और देश-सेवा का अवसर पा सके. ये सभी काम हमने हंसते-हंसते कर्त्तव्य समझ कर किए, बोझ समझ कर नहीं. आगे भी प्रभु सन्मति देकर सद्मार्ग पर चलने की अनुरक्ति देता रहे. आप सबको शिक्षक दिवस की कोटिशः शुभकामनाएं.

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