मजे लिए सत्तू के
झुन्ने ने,मुन्ने ने,मजे लिए सत्तू के।
दादी जो लाई थी,गांव से,बत्तू के।
महक बड़ी सोंधी सी,
रूप भी निराला था।
बच्चों को सत्तू अब,
झट मिलने वाला था।
मस्ती में नाच उठे,
सब के सब लट्टू से।
कांच के कटोरे में ,
मम्मी ने घोला था।
देखा जब पापा ने ,
उनका मन डोला था।
काकी ने भी खाया,
संग -संग कक्कू के।
सत्तू चटकारे ले ,
दादाजी जब खाते ।
बचपन के बार- बार,
याद उन्हें दिन आते।
शक्कर पुंगे वाली,
रोटी की कट्टू के।
— प्रभुदयाल श्रीवास्तव