कविता

कैकेयी का कोप

राम के राज्याभिषेक को
हो रही थी तैयारी,
हर और खुशियों का शोर।
मंथरा को ये सब खटका
उसने अपने मन का गुबार
कैकेयी के सिर पटका,
पहले तो हर्ष के अतिरेक में
थी फूली नहीं समाई,
मंथरा के बहकावे में आकर
बहक गई वो माई।
तब उसनें कोपभवन
का रूख कर डाला,
दशरथ के पूछने,समझाने पर
त्रिया चरित्र दिखाया,
माँग पुराने दो वरदान
दशरथ को आघात लगाया।
राजा मेरा पुत्र बने
राम चौदह वर्षों के लिए
वन को अभी जाय,
जब कोई राह न दिखा तब
दशरथ सदमें में आये,
राम से कुछ कहने की भी
हिम्मत नहीं जुटा पाये।
आखिर जब राम ने जान लिया
पिता के वचनों का सम्मान किया,
माँग आज्ञा पिता से अपने
वन जाने का निश्चय किया,
सीता, लक्ष्मण के साथ राम
खुशी खुशी वन प्रस्थान किया।
◆ सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

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