कविता

लोढ़ती सरसों

लोढ़ती सरसों,
देखा उसे मैंने-
महेंद्र बाबू के ड्योढ़ी पर
आज नहीं, कल-परसों,
लोढ़ती सरसों ।
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दिवस फ़ाग अँधियारा,
होली रूप वानरा,
श्यामली सुन्दर तन भी,
ढलकती यौवन भी,
साथ में ठिठुरती बच्ची,
शबरी-रंग, मुशहर की बच्ची,
कली थी कच्ची ।
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शरीर से शव,
बाबू का प्यासा लव ।
×××××
फिर भी डण्डे से,
बच्ची भी,
फोड़ती सरसों,
लोढ़ती सरसों ।
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[नोट : साप्ताहिक ‘आमख्याल’ में 25 वर्ष पूर्व दि. 29.03.1995 के अंक में छपी कविता, अब पुनर्प्रकाशित]

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.