मुक्तक/दोहा

दिलखुश जुगलबंदी- 34

किस्मत बुलंद कर लो

हंसकर जीना दस्तूर है जिंदगी का,
एक यह किस्सा मशहूर है जिंदगी का,
बीते हुए पल कभी लौट कर नहीं आते,
यही सबसे बड़ा कसूर है जिंदगी का.

वो दस्तूर भी बनाते हैं,
मशहूर भी कराते हैं,
वर्तमान का आनंद तो लेते नहीं,
बीते हुए पलों के लौट कर न आ पाने को कसूर बताते हैं

किस्मत के आगे जोर हमेशा चले जरूरी तो नहीं,
तमन्नाएं लाख हों पर सब पूरी हों जरूरी तो नहीं,
कीमत तो हर कदम पर सबको चुकानी पड़ती है,
फिर भी ज़िंदगी का हर कर्ज़ चुक पाये जरूरी तो नहीं.

बहुत कुछ बदलता है रोज,
मगर मेरे हौसले नहीं बदलते,
मंजिल पाने के लिए बदलता हूं तरीके जरूर,
बढ़ते जाने के इरादे नहीं बदलते.

रह न पाओगे, कभी भुला कर देख लो,
यकीन नहीं आता तो आजमा कर देख लो,
हर जगह महसूस होगी कमी हमारी,
अपनी महफिल को कितना भी सजा कर देख लो.

एक शमा ही तो महफिल की शान होती है,
लाख सितारे हों चमकते आस्मां में,
एक रवि से ही महफिल जवां होती है.

जो अपना है, भूल से भी ना भुला पायेगा कोई,
स्नेह बिना दीप रोशन हुआ है कभी!

कुछ लोग हैं खामोश, मगर सोच रहे हैं,
सच बोलेँगे तब, सच के जब दाम बढ़ेंगे.

अव्वल तो दाम बढ़ने की तृष्णा पूरी होती नहीं,
दाम बढ़ते-बढ़ते तो सोच ही बदल जाती है.

सोचने वालों की दुनिया….
दुनिया वालों की सोच से…. अलग होती है.

अलग सोच वाले ही दुनिया को जीने लायक बनाते हैं,
वरना जमाने में दुश्वारियों की कमी तो नहीं है!

बात इतनी-सी है, हम तो सुधरने से रहे,
अब यह आप पर है,
हमें ऐसे ही अपनाना है, या दूर भगाना है.

इतनी-सी बात हवाओं को बताए रखना,
रोशनी होगी चिरागों को जलाए रखना,
न बिगड़ने की आरजू रखता है कोई,
खुद सुधरो किसी और से सुधरने की तलब मत रखना.

हम अभी तो ठीक से बिगड़े भी नहीं
और लोगों ने सुधारना शुरु कर दिया.

जो ठीक से बिगड़े होते तो नवाब होते,
अब तो सलीके से सुधरने में ही भलाई है.

कभी कुछ गलतियां माफ नहीं की जा सकतीं,
सुधारी जा सकती हैं.

सुधर जाएं जो वो गलतियां ही किस काम की!
अब तो माफ़ करने में ही भलाई है.

मुखौटे-दर-मुखौटे उतर रहे हैं,
लोग सुधरने के बजाय बिगड़ रहे हैं.

अब तो मुखौटों ने भी रूप बदल लिया है,
पता नहीं मास्क के पीछे मुस्कुराते हैं,
या लाज के मारे मुंहं छिपाते हैं.

आदतें दो प्रकार की होती हैं,
एक तो वो जिन्हें हम सुधारना चाहते हैं,
एक वो जो हमें सुधारना जानती हैं.

आदतें तो आदतें ही होती हैं ऐ दोस्त,
चाहे वे सुधरें या हमें सुधारें!

ना तो इतने कड़वे बनो की कोई थूक दे,
ना इतने मीठे की कोई निगल जाये.

तल्खिया-ए-हालात भी सिखाती हैं कुछ हमें
वर्ना बे-अंदाज़ ही जीते थे रौ में ज़माने की.

बस सोच का ही तो फरक है,
किसी के लिए ये जिंदगी स्वर्ग के समान,
तो किसी के लिए नरक है.

सोच ही तो जिंदगी का मार्ग प्रशस्त करती है,
अपने निशां छोड़ जाती है, जिधर से भी गुजरती है!

तू मत सोच तेरा क्या होगा,
जिसने जिंदगी दी है,
उसने भी तेरे बारे में कुछ सोचा होगा.

सब्र रखने से ही बनती मलाई है.
तस्बीह भी उसकी, तरकीब भी उसकी,
उसी का सोचा होने में भलाई है,

उसकी मर्जी बिन वक्त भी अपाहिज है,
न दिन निकलता है आगे, न आगे रात चलती है,
जुस्तजू जिसकी है आरजू में ही मिलती है,
हकीकत में मिलने के लिए, किस्मत बुलंद चाहिए।

किस्मत को बुलंद कर लो,
दामन में खुशियां भर लो,
दीपावली पर माटी के दीप जलाकर,
जीवन में माटी की सोंधी सुगंध भर लो,
अपने साथ माटी के दीप बनाने वालों की भी,
किस्मत बुलंद कर लो.

किस्मत बुलंद कर लो कि मौका भी है दस्तूर भी,
दीपों का पर्व है, आने दो सबकी आंखों में खुशियों का नूर भी.

(यह दिलखुश जुगलबंदी ब्लॉग ‘दिलखुश जुगलबंदी- 33’ में रविंदर सूदन, सुदर्शन खन्ना, चंचल जैन और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित है)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “दिलखुश जुगलबंदी- 34

  • मनमोहन कुमार आर्य

    रचना को पढ़ कर उसका आनन्द उठाया। दीपावली पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनायें। ईश्वर आपको व आपके सभी परिवार जनों को सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्य, यश, कीर्ति व दैवीय आनन्द प्रदान करें। हमारे वैदिक धर्म व संस्कृति की रक्षा हो। देश को कमजोर करने वाली सभी शक्तियां परमात्मा पराजित व समाप्त करें। परमात्मा सबको सबको सद्बृद्धि दे।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपकी आशीष भरी शुभकानाएं मिलीं. आपको भी सपरिवार दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपको भी सपरिवार दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ. यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि हमेशा की तरह यह रचना, आपको बहुत अच्छी व प्रेरक लगी और आनंद आ गया. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    किस्मत बुलंद कर लो कि मौका भी है दस्तूर भी,
    दीपों का पर्व है, आने दो सबकी आंखों में खुशियों का नूर भी.

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