गीत – नारी तुम ..
नारी तुम अद्वितीय रचना हो करतार की
नारी तुम प्यारी सी गणना हो संसार की
बेटी बन लुटाती अपार खुशियाँ घर में
भोली सी सयानी सी बैठ जाती सबके मन में
सदियाँ गवाह है जिसके निश्छल प्यार की ।
माँ के किरदार को शब्द नहीं कलम में
कर पायें संस्तुति ऐसी शक्ति नहीं हममें
पाने को तरसते स्वयं ईश्वर वो पराकाष्ठा विचार की ।
भाभी बन चाबी खोलती हृदय के ताले
काकी बुआ ताई के होता बचपन हवाले
है जो संबन्धों की देवी आत्मा परिवार की ।
पत्नी का प्यार देकर जो पूर्ण करती नर को
तन मन समर्पित करके मधुवन बनाती घर को
रही जीत जिसकी चाहत आदी ना हार की ।
नारी तुम अद्वितीय रचना हो करतार की ।।
— व्यग्र पाण्डे