लघुकथा

मीठे बेर

“लो बाबू जी दूध पी लो “दूध का गिलास भैया को पकड़ाते हुए वो बोली।दस -ग्यारह साल की दुबली पतली लड़की थी वो , धीमी आवाज़ में भैया ने दूध का गिलास पकड़ते उससे कहा ,अरे “कम्मो स्कूल नहीं गयी आज “जा रही हूँ बाबू जी ” कह मीना की तरफ देखती हुई तेज़ी से चली गयी।
भैया की तबियत ख़राब सुन दो दिन पहले ही मीना गाँवआयी है।बहुत समय से  गाँव आने की सोच रही थी ।पर घर के काम और  सास जी की बीमारी के चलते नही आ पा रही थी । उस लड़की को यहां पहली बार देखा था ।कौन हो सकती है ।भाभी के घर के छोटे छोटे कामों में सहायता करते  उस को देख रही थी ।
“अब तुम आराम कर लो कब तक बैठी रहोगी “भाभी ने तभी आवाज़ दी ,”ठीक है भाभी !कह उठकर मीना कमरे मे आ गयी । शाम को हवेली के पीछे वाली खिड़की को खोल मीना ने जैसे ही बहार झाँका वो अपने हम उम्र बच्चों के साथ झर बेरी के बेर तोड़ती दिखायी दी ।उस के कपड़े मैले थे बाल कुछ लम्बे घने ,पर देखने में नयन नक़्श बहुत तीखे ,रंग एकदम गोरा कद काठी से बहुत सुन्दर थी ।
सभी बच्चों की मुखिया बनी थी ,जैसे कह रही थी सब मान रहे थे ।सारे तोड़े गये बेर एक जगह इकट्ठा कर उसने सब को बराबर -बराबर बांट दिये थे । मीना को खिड़की से देखते देख कुछ अपने हिस्से के बेर उसने हँसते हुए मीना की और बढा दिये ।”माई बहुत मीठो है खाओ “न जाने ना चाहते हुए भी कुछ बेर मीना ने ले लिए।उस की मासुमियत और गहरी भूरी आँखों में क्या जादू था मीना उसे बहुत देर तक दूर जाते देखती रही ।
“अरे मीना ये बहुत अच्छी लड़की है ‘पिता तो भारत -पाक लड़ाई में जब ये छोटी थी शहीद हो गये थे। माँ साल पहले ज़मींदार के ज़मीन हड़प लेने से सदमे मे चल बसी।तब तुम्हारे भाई ने ही इसको अपनी हवेली के पीछे कोठरी में रख लिया था ,और स्कूल में इसकी पढ़ाई जारी रखी ।
तब से तुम्हारे भैया का  बहुत आदर करती  है ।और जब से वो बीमार है, मेरे साथ उनकी देखभाल भी कराती है ।गाँव में भी सब के छोटे छोटे काम करादेती है ,
उस के अच्छे व्यवहार से गाँव वालों का चहेती बन गयी है ।भाभी ने मीना को देखते हुए कहा ।
मीना ने भैया के सामने उसको अपने साथ शहर ले जाने का प्रस्ताव रखा।”मीना मैं तुम्हारे मन की इच्छा को जानता हूँ ।तुम चाहते हुए भी बेटे के बाद माँ नहीं बन पायी हो ,अगर इस बिना माँ बाप की बच्ची को अपनाना चाहती हो तो ठीक है पर उसे बीच मझधार में नहीं छोड़ देना ।”भैया ने कहा था। ।
उस को गोद ले मैं बहुत खुश थी ।उस केआने से घर मे  रौनक आ गयी थी ।उस का व्यवहार और पढ़ने लिखने में बहुत मेधावी होने से, पति और बेटे ने भी जल्दी ही उसे अपना लिया था ।मेरी  बेटी की चाह भी पूरी हो गयी ।
आज वो दुबली -पतली चौबीस वर्ष की सुन्दर युवती (कम्मो )डाक्टर कामिनी  बन गयी थी ।”माँ कल मुझे डिग्री मिलने वाली है उस समारोह में आप को पापा को साथ चलना होगा “गले में बाँह डाल कर कामिनी ने मीना से कहा ।उसकी गहरी भूरी आँखों में झाँकते हुएँ ,मीना के मुँह से यही बर बस निकल पड़ा ।भैया ने ठीक ही कहा था, मीना बचपन कुम्हार  की गीली मिट्टी जैसा होता है साँचे में जैसा ढाल सकते है जैसा आकार देना चाहो देदो!अच्छा या ख़राब “।
यह कह मीना ने कामिनी को गले से लगा लिया।
— बबिता कंसल 

बबीता कंसल

पति -पंकज कंसल निवास स्थान- दिल्ली जन्म स्थान -मुजफ्फर नगर शिक्षा -एम ए-इकनोमिकस एम ए-इतिहास ।(मु०नगर ) प्राथमिक-शिक्षा जानसठ (मु०नगर) प्रकाशित रचनाए -भोपाल लोकजंग मे ,वर्तमान अंकुर मे ,हिन्दी मैट्रो मे ,पत्रिका स्पंन्दन मे और ईपुस्तको मे प्रकाशित ।