कथा साहित्यकहानी

/ मेरी भोली माँ /

पलंग पर बैठा मैं पुस्तक पढ़ रहा था। परीक्षाओं की तैयारी में कर रहा था। घंटी बजाते हुए एक ठग पास आकर मेरा भविष्य बताने लगा – ” तुम मुसीबतों में फँसनेवाले हो । तुम नीचे गिरोगे, माता अभी तक झूठ नहीं बोली है। ” पहले से ही इन जोतिषियों की घंटी की आवाज़ सुनना मेरे लिए घृणा की थी। इन्होंने हमारे घर का सत्यनाश किया था। मेरा बॉप इनकी बातों पर विश्वासकर हजारों रूपये उनकी झोली में डालता था। बचपन से ठगों को देखता आ रहा था। झूठ बोलकर ये लखपति, करोड़पति बनने लगे। आज की दुनिया में हर गाँव, शहर में इनको हम देखते हैं। समझ में आया है कि मंत्र – तंत्र से कुछ नहीं होगा। अपने श्रम के बल पर ही जीवन में कुछ बन सकते हैं। ठगों की झूठी बातें सुनना भी मुझे पसंद न था। जब वह ठग मेरे कानों में आवाज देने लगा तो मेरे अंदर क्रोध की ज्वाला जलने लगी। मैं चिड़-चिड़ा सा हो गया ।
” जीना सीख लिये हैं, लोगों को ठगते-फिरते ? ” मैंने आवाज उठायी। मेरी चिल्लाहट सुनकर माँ ने बर्तन धोना छोड दी और दौड़़कर भागी। मेरी माँ को देखते ही उस ज्योतिष के गले में बल बढ़ने लगा। तेज स्वर में वह बोला -” माँ जी ! बेटे को एक शैतान पकड़ लिया है। कांतिहीन उस चेहरे को देखो! वह शैतान बालक को नीचे गिरानेवाला है। अच्छी तरह पढ़नेवाले इस बालक को देखो… । शैतान उसको किस तरह सता रहा है ? ”
माँ ने मुझपर इतनी आशाएँ रखी हैं कि जिंदगीभर किस तरह का भी मुसीबत न आयें। अगर वह शैतान दिखाई पड़े तो उसकी चोटी पकड़कर घसीटते हुए पैर से मारेगी। माँ उस ज्योतिषी से बोली- ” अब क्या करना है, शैतान से मेरे बच्चे को कैसे बचाना है ? इस उपाय बताकर पुण्य का सुख पाओ । ”
” माँ इसकी बातों पर विश्वास नहीं करना, यह झूठ बोलता है। हमें बकरा बना रहा है। इसको जाने दो। ” माँ को समझाते हुए मैंने कहा।
” माँ जी ! शैतान भोले लड़के से किस तरह झूठ बुलवाता है देखो! इसलिए मैं कहता हूँ कि जल्दी से जल्दी इस शैतान से बेटे की मुक्ति कराओ। ” ज्योतिषी ने अपनी बातों से माँ को अपनी ओर आकृष्ट किया है। यदि बोलने का मैं मुँह खोलता तो माँ मुझे डाँटने लगी। अब मुझे बोलने का अवसर ही मिल नहीं पाया। माँ उसकी बातों पर विश्वास करने लगी है। ठग ने बातों का माया जाल सीखा है। मंत्र – तंत्र के नाम पर निरक्षर लोगों को लूटी करते आ रहे हैं। माँ उसकी बातें सुनते हुए सच से दूर होने लगी। अब मेरी एक बात भी सुनती ही नहीं। मेरी देखभाल अपना प्रथम कर्तव्य मानती। शैतान को दूर करने का मोल-तोल शुरू हुआ। एक मुर्गा तथा दस हजार रूपये वह मांगने लगा। माँ एक सौ सोलह रूपये देने की बात पर ठहरी। दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़िग रहे। धोखेबाजी अवश्य झुकना पड़ता है। बात पर खड़ा नहीं हो पता, दस हजार पूछनेवाला वह ठग माँ की बात मानने को तैैयार हुआ। बिना मुर्गे के चार सौ रूपये पर राजी हो गया। मुर्गा उसी का है, जो मुर्गे के रक्त में तावीज़ डुबाना है। माथे पर हाथ रखकर मैं रह गया। मेरे विचार बलहीन हो गया। माँ मेरी ओर सहानुभूति से देख रही थी। साँब्राणि धूप जलाकर नीम के पत्ते मेरे सिर पर पटकते हुए कुछ मंत्र अपने अंदर और कुछ बाहर बोलने लगा।
“ओम भम -भम शैतान ! लड़के को छोड़कर बाहर आ जाओ, नहीं तो तुम्हें भष्म कर डालूँगा। कई बार वह अपने मन में फुस-फुसाने लगा। एक बार उँगलियाँ हल्दी में रखता है तो दूसरी बार चूने में। अब उँगलियाँ पानी का स्पर्स कर दोनों उँगलियाँ मलता रहा तो उन में से लाल रंग निकलने लगा ।
“देखो माँ शैतान का! ” बोलता हुआ वह ठग अपनी थैली से एक छोटा मुर्गा निकाला । उनकी पंखों को दूसरी तरफ मोड़ दिया। एक सुई से उस पर छोटी घात की। एक तावीज लेकर बहनेवाली रक्त उस पर लगा लिया। फिर से मुर्गे को थैली के अंदर डाल दिया। माँ के लिए ये सभी मुझे सहना पड़ा।
मैंने तावीज को हाथ पर बाँधने का आग्रह किया ।
“माँ जी यह तावीज हाथ पर बाँधने का नहीं, कमर पर बाँधनी है। नहीं तो बड़ा दोष आ जायेगा। ” वह कहने लगा।
माँ मेरी ओर देखी और बोली -“तुम अभी भी बच्चे हो। तुमको कुछ भी भेद मालूम नहीं। मेरी बात मानकर उसकी बातें मानो।” माँ की ये बातें मेरे मुँह पर ताला लगायी।
क्या करूँ, तावीज़ मेरे कमर पर बाँधी गयी । माँ से पैसे लेकर वह खुशी के साथ चला गया। माँ भी खुशी थी कि मुझे पकड़नेवाला शैतान चला गया।
आज के शाम को सात नहाने गुसलखाने में जाकर उस तावीज को ध्यान से देखा तो मालूम पड़ा कि वह तावीज़ एक छोटी लकड़ी का टुकड़ा है। उस पर पूरा धागा बाँधा दी गयी है। माँ को दिखाया उसके राज का पता लगाया। माँ उस ठग को गालियाँ देने लगी। इसके बाद माँ ने किसी ज्योतिष को घर के आँगन तक आने नहीं दिया।

**************

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।